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________________ कवि के लिए १-दर्शन, -वर्णन और ३-श्रवण पूर्ण आवश्यक है। श्रवण वृद्ध-सांनिध्य से पुष्ट होता है इसीलिए कहा गया है कि प्रथयति पुरः प्रज्ञाज्योतियथार्थ-परिग्रहे, तदनु जनयत्यहापोहक्रिया-विशदं मनः / अभिनिविशते तस्मात्तत्त्वं तदेकमुखोदयं, सह परिचयो 'विद्यावृद्ध :' क्रमादमृतायते // कवि-सष्टि और उसके अनेक रूप ___ कवि की सप्टि अनठी है; प्रकृति-सप्टि पीतल के समान है जिसे कवि स्वर्णरूप में परिवर्तित करता है। उसका प्रत्यक्ष-बोध कल्पना के पंख पाकर अनन्त आकाश की सैर करता है और अनुभूत भावों को शब्दार्थ के रूप में प्रतिष्ठित करके पाठकों को मानन्दमन्दाकिनी में अवगाहन करने का अवसर प्रदान करना है। काव्य में प्रयुक्त भाषा का अर्थ-(१) शब्द का मुख्यार्थ, (2) वक्ता अथवा लेखक का मनोभाव, (3) उनकी स्वरभंगिमा जिससे वह श्रोता के प्रति स्वसम्बन्ध का निर्देश करता है तथा (4) लेखक का तात्पर्य, जो केवल व्यञ्जना द्वारा लक्षित होता है-इन चार अंगों से भावोत्प्रेरक तथा कवि और पाठक के बीच तादात्म्य-सम्बन्ध का स्थापक होता है। यह सष्टि अनेक रूपों में अभिव्यक्त होती रहती है। इसके स्वरूपो का एक सिंहावलोकन निम्नलिखित तालिका से किया जा सकता है जिसमें गद्य, पद्य और मिश्र के रूप में शास्त्रकारों द्वारा निर्धारित कतिपय रूप परिलक्षित होते हैं 1. काव्यमीमांसा 2. विद्वानों ने इन रूपों की कई प्रकार से तालिकाएं प्रस्तुत की हैं जिनमें कुछ नामान्तर भी हुए हैं, किन्तु यहां विस्तारभय से अधिक चर्चा नहीं की गई है।
SR No.004489
Book TitleArshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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