________________ ( 2 ) कविपरिणति के लिये आवश्यक तत्त्व, कवि-सष्टि और उसके अनेक रूप, संस्कृत भाषा के महाकाव्य, काव्य के लक्षण तथा महाकाव्यपरम्परा और जैनाचार्य" जैसे शीर्षकों में पहले 'पूर्वपीठिका' भी प्रस्तुत की गई है, जो इस प्रकार हैकवि-काव्यकार___महाकाव्यादि का निर्माता कवि काव्य-संसार में एक प्रजापति के रूप में प्रतिष्ठित हुआ' और उसकी रसानुगुण शब्दार्थ-चिन्तां के स्वरूपस्पर्श से प्रतिभा चहक उठी, त्रैलोक्यवर्ती भावों का साक्षात्कार' करता हया वह कवि' शब्दार्थों के विन्यास-विशेष से जगत को सम्मोहित करने में सफल हो गया। अंत: समस्त विश्व ऐसे काव्यकार के प्रति अपना मस्तक झुकाये तो उसमें आश्चर्य ही क्या ? कविशक्ति एवं प्रेरणा कवि की शक्ति के दो मूल स्रोत-(१) अलौकिक-बाह्य तथा (2) आन्तरिक स्वभावजन्य प्रसिद्ध हैं। इन्हीं को आचार्य हेमचन्द्र ने 'उत्पाद्या' तथा 'औपाधिको' नामों से अभिहित कर प्रतिभा के दो भेदों में बतलाया है। राजशेखर ने प्रतिभा के भावयित्री (भावक की) और कारयित्री (कवि की) ऐसे दो रूपों का निरूपण करके द्वितीय कारयित्री प्रतिभा को कवि की प्रतिभा कहा है। यह 1. अपारे काव्य-संसारे कविरे कः प्रजापतिः / यथाऽस्मै रोचते विश्वं तथेदं परिवर्तते / आनन्दवर्धन, ध्वन्यालोक 2. रसानुगुणशब्दार्थ-चिन्तास्तिमितचेतसः / क्षणं स्वरूपस्पर्शोत्था प्रज्ञ व प्रतिभा कवेः / / सा हि चक्षर्भगवतस्ततीयमिति गीयते।। येन साक्षात्करोत्येष भावांस्त्र लोक्यवतिनः / / 3. यानेव शब्दान वयमालपामो, यानेव चार्थान् वयमुल्लिखामः / तैरेव विन्यास विशेषभव्यैः सम्मोहयन्ते कवयो जगन्ति / / कश्चित्