________________ भादवदई भौग म छोरो, अबलासू काम न चोरो; तुम्स साथि किस्यो चालई जोरी, रे ! सामलिग्रा० 10 तुम विण निशि निंद न आवई, मुझ अन्न न भावई; . दोहिला तुझ विण दिन जावई, रे! सामलिया० 11 प्रेमइ पूरी बोलई नारी, योवन कां जाओ हारी; जो हईडई कंथ विचारी, रे ! सामलिग्रा० 12 कुण आगलि दुक्ख कहीजई, योवनरो लाहो लीजई; जिस दुःख सघलां ते छीजइ, रे ! सामलिग्रा 13 सखि ! जाई मनावो एकान्त, वेगि तेडी आवो कंत; जिस विरहनो थाई अंत, रे सामलिया० 14 भावी रूडी ए चित्रशाली, नेहई निज रिजुप्रो निहार; ___ एहवी सेज कां मको सुहाली, रे ! सामलिग्रा०१५ नाहलियो वेगि मनावो, जोरई हाथ ग्रही झाली लावो; धण मंकी निरधार कां जावो, रे ! सामलिग्रा० 16 एहवा राजुल वचन बोलंती, प्रिउनुं ते ध्यान धरती; गिरनारी चढी विलवंती, रे ! सामलिग्रा० 17 सामी मुझ सुणि एक बात, एसो छई तुमारी घात (?) - मानी वचन शिवादेवी जात, रे ! सामलिग्रा० 18 नेम हाथि संयम लेई, अविहड तब प्रीति करेई; शिवपुर पिउपहिली पुहचेई, रे ! सामलिग्रा० 16 नेम थुणिो मन उल्लास, महीसाणई रहीअ चउमास; - पुगी छइ मूझ मनि पास, रे ! सामलिआ० 20 संवत सतर तेर वरसि, कार्तिक सुदि पंचमी दिविसि ; __ तवन करिउं मन हरखि, रे ! सामलिग्रा० 21 पंडित श्रीनयविजय ईश, श्रीजस विजय तेहनो सीस; सीस तत्वदिई आसीस, रे ! सामलिग्रा० 22 श्रीने मिजिनस्तवनं सम्पूर्णम् /