________________ भगवान श्रीनेमिनाथजीनु स्तवन (सूचना-वि० सं० 1713 में पू० उपाध्याय जी महाराज के द्वारा महेसाणा में चातुर्मास-वास के दिनों में रचित यह स्तवन पहली बार ही यहां प्रकाशित हो रहा है।) -- + + + . सद्गुरुना प्रणमी पाय, थुणसु श्री यदुपति राय ; . उलट अधिके रह्यो थाय, रे ! सामलिग्रा० 1 करजोडी राजूल बोलई, अष्टभवनी प्रीतिज. खोलई; नवमई भवि कां डमडोलई, रे ! सामलिग्रा० 2 पुरवली प्रीति संभारो, तुम दरिसण लागइ प्यारो: किम राखो नेह उधारो, रे ! सामलिग्रा०३ कंत अजाण होइ तेहनी कहींई, नेह कीजई तो निरवहीइ; डर डर एकमडा न रहीई रे ! सामलिग्रा० 4 प्रावी पाव सरति सुख काग, दीसई छइ अतिमनोहार; बापई भी करइ पूकारा, रे ! सामलिग्रा० 5 पंथी सबही घरि पावइ, कदर्प ते अधिक जगावइ; एक निठर नेम न पावइ, .रे ! सामलिग्रा०६ सखि ! श्रावण मास ते आयो, अंगि मुझ मदन जगायो; विरहीनई अति दुःखदायो, रे ! सामलिआ० 7 झिरमिर वरसई छई मेह, तापइ मज दाझइ देह; एणी अति सालई सनेह, रे ! सामलिग्रा०८ पाव्यो ते ग्रासो मास, आवो एणइ ग्रावास ; . पूरोनि मुझ मन आस, रे ! सामलिग्रा० 6 १-इस स्तवन का हस्तलिखित पत्र मिल जाने पर उसकी प्रतिलिपि करके यहां प्रकाशित किया गया है। उपाध्याय जी के स्तवन अभी भी प्रकीर्ण हस्तपत्रों अथवा गुटकों से प्राप्त होने चाहिए।