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________________ ( 20 ) . इसका उत्तर विशेष विवेचन किये बिना ही जैन अजैन विद्वानों ने अपने अनुभव, जो बात-वाणी जो श्लोकों में उतारी है, वे ही श्लोक 'यहां उनके अर्थ सहित उद्धृत करता हूं। जिन्होंने इस सिद्धकोश की रचना की उन्हीं महर्षि की वाणी एक श्लोक में प्रस्तुत करता हूं। भक्तिमार्ग क्या है ? यह बतलाते हुए कहते हैं श्रुताब्धेरवगाहनात् सारासारसमुद्धृतः / भक्तिर्भागवती बीजं परमानन्दसम्पदाम् / / 1 // : ___ अर्थ-आगम शास्त्रों के सागर में डुबकी लगाकर और सार तथा असा र के विवेचन के पश्चात् मैंने यह सार प्राप्त किया है कि- परमानन्द रूप मोक्षस्थान की प्राप्ति करनी हो तो आप सब पवित्र भगवान् की भक्ति का आलम्बन ग्रहण करो। अजैनों में भी इसके समान ही भाव व्यक्त करने वाला श्लोक देखिये आलोड्य सर्वशास्त्राणि विचार्य च पुनः पुनः / इदमेकं सुनिष्पन्नं ध्येयो नारायणो हरिः // 1 // - अर्थ-सर्वशास्त्रों का वाचन-मनन किया और तत्पश्चात् उन शास्त्रवचनों पर बार-बार चिन्तन किया, किन्तु कुल मिलाकर मुझे तो यह एक ही सार मिला है कि इस विश्व में परमात्मा ही एक ध्यान के योग्य है अथवा प्राप्त करने योग्य है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विचार करें तो मानव-स्वभाव को सरल और सहज भाग अधिक प्रिय लगता है। भक्ति मार्ग अमीर अथवा गरीब, शिक्षित या 1. आवश्यक सूत्रों में, स्तोत्र, स्तुति और शान्तिपाठों में तो भौतिक लाभों की बातें अपार बताई गई हैं।
SR No.004489
Book TitleArshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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