________________ ( 4 ) प्रकाशन हो रहा है। उपर्युक्त 15. में तीन जोड़ने से कुल 18 कृतियां 'यशोभारती जैन ग्रन्थ प्रकाशन संस्था' प्रकाशित कर रही है, इनमें पन्द्रह कृतियां तो पहली बार ही प्रकाशित हुई हैं। शेष दो 'ऐन्द्रस्तुति' और कतिपय स्तोत्रोंवाली 'स्तोत्रावली' पहले अन्य स्थानों से प्रकाशित हुई थीं। इतना होते हुए भी प्रस्तुत दोनों प्रकाशन अपूर्ण थे। इसलिये संशोधन-परिवर्धन के साथ नई कृतियों के संयोजन-पूर्वक उनका हिन्दी अनुवाद सहित विशिष्टपद्धति से प्रकाशन हुआ है। अब '108 बोल, अढार सहसशीलांग रथ, श्रद्धानजल्पकल्पलता, कूपदृष्टान्त, विचारबिन्दु तथा तेरकाठिया'--ये छह कृतियां प्रकाशित होने वाली हैं, तब कुल 24 कृतियां प्रकाशित हो जाएंगी। कार्य चल रहा है। अब प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्बन्ध में आज उपाध्यायजी की स्वकृति के रूप में आठवां प्रकाशन हो रहा है। यशोभारती संस्था की ओर से यह आठवां प्रकाशन उपाध्यायजी की तीन कृतियों से संयुक्त है इसलिये इस पर तीन नाम' छपाये गये हैं। इन तीनों कृतियों का परिचय विद्वद्वर्य, प्रखर साहित्यकार, डॉ० रुद्रदेवजी त्रिपाठी ने इसी ग्रन्थ में दिया है, वह देख लें। शेष जो कहना रहता है वह कहता हूं। इन तीनों कृतियों का रचना-परिमाण बहुत थोड़ा होने से प्रत्येक की पृथक्पृथक् पुस्तिका को जन्म देना यह जानबूझकर निर्बल * बालकों की जमात को जन्म देने जैसा प्रतीत हो और वह अदर्शनीय बन जाए, इसका कोई महत्त्व न रहे / पुस्तक का कलेवर पुष्ट बने, इस दृष्टि से यह संयुक्त प्रकाशन निश्चित किया गया। आकार बढ़े, इसके लिए 1/16 क्राउन की साइज पसन्द की गई। इससे पुस्तक का आकार बढ़ा / 1. पुस्तकालयों की सूची बनाने वालों को, इस पुस्तक की तीनों कृतियों का उन-उन अक्षर विभागों में पृथक्-पृथक् नामाङ्कन करना चाहिए, जिससे ये शीघ्र प्राप्त हो सकें।