________________ अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए। वहाँ आपको अध्ययन कराने वाले पण्डितजी को प्रतिदिन एक रुपया दक्षिणा के रूप में दिया जाता था। सरस्वती-मन्त्र-साधना काशी में गङ्गातट पर रहकर उपाध्यायजी ने 'ऐङ्कार' मन्त्र द्वारा सरस्वतीमन्त्र का जप करके माता शारदा को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त किया था जिसके प्रभाव से पूज्य यशोविजय जी की बुद्धि तर्क, काव्य और भाषा के क्षेत्र में कल्पवृक्ष की शाखा के समान पल्लवित, पुष्पित एवं फलवती बन गई। तब से ही श्री यशोविजयजी महाराज विभिन्न शास्त्रों का स्वयं पालोडन करके उन पर टीका आदि का निर्माण और उत्तमोत्तम प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी एवं गुजराती भाषा में काव्य रचनाएँ करने लगे। . . शास्त्रार्थ एवं सम्मानित पदवीलाभ ... एक बार काशी के राज-दरबार में एक महासमर्थ दिग्गज विद्वान्-जो प्रजैन थे—के साथ पू. उपाध्यायजी ने अनेक विद्वज्जन तथा अधिकारी-वर्ग की उपस्थिति में शास्त्रार्थ करके विजय की वरमाला धारण की थी। उनके अगाध पाण्डित्य से मुग्ध होकर काशीनरेश ने उन्हें 'न्यायविशारद' विरुद से सम्मानित किया था। उस समय जैन संस्कृति के एक ज्योतिर्धर और जैन प्रजा 1. इस सम्बन्ध में वि० सं० 1736 में स्वरचित 'जम्बस्वामी रास' में स्वयं उपाध्यायजी ने निम्नलिखित पंक्तियाँ दी हैं शारदा सार दया करो, पापी वचन सुरंग / तू तूटी मुझ ऊपरे, जाप करत उपगंग // तर्क काव्यनो तें सदा, दोधो वर अभिराम / .. . भाषा पण करी कल्पतरु शाखासम परिणाम // इसी प्रकार 'महावीर-स्तुति' (पद्य 1) तथा 'अज्झत्तमतपरिक्खा' की स्वोपज्ञवृत्ति को प्रशस्ति (पद्य 3) में भी ऐसा ही वर्णन किया हैं /