________________ . 16 दी गई / तदनन्तर गुरु नयविजयजी विहार करके अहमदाबाद पधारे / वहाँ विविध प्रकार का धार्मिक शिक्षण प्रारम्भ किया। तीव्र बुद्धिमत्ता के कारण वे तेजी से पढ़ने लगे। पढ़ने में एकाग्रता और उत्तम व्यवहार को देखकर श्रीसंघ के प्रमुख व्यक्तियों ने बालमुनि जसविजय में भविष्य के महान् साधु की अभिव्यक्ति पाई / बुद्धि की कुशलता, उत्तर देने की विलक्षणता आदि देखकर उनके प्रति बहुमान उत्पन्न हुआ, धारणा-शक्ति का अनूठा परिचय मिला। वहाँ के भक्तजनों में 'धनजी सुरा' नामक एक सेठ थे। उन्होंने जसविजयजी से प्रभावित होकर गुरुदेव से प्रार्थना की कि 'यहाँ उत्तम पण्डित नहीं हैं अतः विद्याधाम काशी में यदि इन्हें पढ़ने के लिए ले जाएँ तो ये द्वितीय हेमचन्द्राचार्य जैसे महान् और धुरन्धर विद्वान् बनेंगे / ' इतना निवेदन करके धनजी भाई ने इस कार्य के लिये होनेवाले समस्त व्यय का भार उठाने तथा पण्डितों का उचित सत्कार करने का वचन भी दिया। विद्याधाम काशी में शास्त्राध्ययन यशोविजय गुरुदेव के साथ उत्तम दिन , विहार करके परिश्रम-पूर्वक गुजरात से निकल कर दूर सरस्वतीधाम काशी में पहुंचे। वहाँ एक महान् विद्वान् के पास सभी दर्शनों का अध्ययन किया / ग्रहण-शक्ति, तीव्रस्मृति तथा आश्चर्यपूर्ण कण्ठस्थीकरण शक्ति के कारण व्याकरण, तर्क-न्याय आदि शास्त्रों के अध्ययन के साथ ही वे अन्यान्य शास्त्रों की विविध शाखाओं के पारङ्गत विद्वान् भी बन गये / दर्शन-शास्त्रों का ऐसा आमूल-चूल अध्ययन किया कि वे 'षड्दर्शनवेत्ता' के रूप में प्रसिद्ध हो गए / उसमें भी नव्यन्याय के तो वे बेजोड़ विद्वान् बने तथा शास्त्रार्थ और वाद-विवाद करने में उनकी बुद्धि-प्रतिभा ने 1. 'यशोदोहन' में 'इस दीक्षा का समय वि० सं० 1668 दिया है तथा यह दीक्षा हीरविजयजी के प्रशिष्य एवं विजयसेन सूरि जी के शिष्य विजय देवसरिजी ने दी थी' ऐसा उल्लेख है / देखो पृ० 7 / 2. वहीं इसके लिए दो हजार चाँदी के दीनार व्यय करने का भी उल्लेख है।