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________________ 12 का व्यापक प्रचार करनेवाले गुर्जरेश्वर परमाहत महाराजा कुमारपाल भी गुजरात की धरती पर उत्पन्न होनेवाले नर-रत्न थे। जिनके आदेश से सेना के लाखों की संख्या में नियुक्त व्यक्ति, हाथी एवं घोड़े भी जहाँ वस्त्र से छना हुया पानी पीते थे। सिर में पड़ी हुई जूं तक को जिसके राज्य में मारा नहीं जा सकता था, जिसने धरती से हिंसा-राक्षसी को सर्वथा देशनिकाला दे दिया था, वे महाराजा कुमारपाल पूज्य श्री हेमचन्द्राचार्यजी के ही शिष्य थे / यही कारण है कि हेमचन्द्राचार्य एवं कुमारपाल की जोड़ी द्वारा लोकहृदय में बहाई गई अहिंसा, दया, करूणा, प्रेम, कोमलता, सहिष्णुता, समभाव, शान्तिप्रियता, धार्मिकभाव, सन्तप्रेम, उदारता आदि गुणों. की धारा इस देश में प्रमुख स्थान रखती है। वस्तुतः अपने गुरुदेव के आदेश से कुमारपाल द्वारा योग्यता और सत्ता के सहारे गुजरात की धरती के प्रत्येक घर से लेकर कण-कण तक फैलाई गई अहिंसा भारत के इतिहास में बेजोड़ है, अद्भुत है और सदा के लिए अमर है / जसवन्तकुमार भावी यशोविजयजी, __ ऐसी गुजरात की पुण्य भूमि पर उत्तर गुजरात में एक समय गुजरात की राजधानी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त 'पाटण' शहर है जो कि मन्दिर, सन्त, महात्मा, धर्मात्मा तथा श्रीमन्तों से सुशोभित है / उस पाटण नगर के निकट ही 'धीणोज' गाँव है। इस धीणोज से कुछ दूरी पर 'कनोडूं" नामक गाँव है। आज वह गाँव सामान्य गाँव जैसा है / आज वहां संभवत: जैनों के एक-दो ही घर होंगे किन्तु सोलहवीं शती में वहाँ जनों की बस्ती अधिक रही होगी। इसी 'कनोई' गांव में 'नारायण' नामक एक जैन व्यापारी रहते थे, जो धर्मिष्ठ थे, उनकी पत्नी का नाम 'सौभाग' (सौभाग्यदेवी) था। इस पत्नी ने किसी 1. पूज्य उपाध्यायजी ने स्वरचित किसी भी कृति में अपनी जन्मभूमि, शैशवकाल की निवासभूमि एवं माता-पिता आदि का उल्लेख नहीं किया है किन्तु प्रायः 150 वर्ष पश्चात् उनके बारे में कान्तिविजयजी द्वारा लिखित 'जसबेलड़ी' अर्थात् 'सुजसबेली भास' से कुछ परिचय प्राप्त होता है।
SR No.004489
Book TitleArshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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