SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 38 ) . इसी से प्रस्तुत य० संज्ञक प्रति की फोटो कॉपी देखकर मुझे पाह्लाद हुआ। एतदतिरिक्त विशेष स्पष्टता के लिए ला० द० विद्यामन्दिर वाले यहां बतलाये गये संग्रह की पू० पा० उपाध्यायजी के द्वारा स्वहस्त से लिखित प्रतियों के साथ प्रस्तुत फोटो कापी के अक्षरों को मिलाने पर सविशेष विश्वास हुमा कि यह य० संज्ञक प्रति कर्ता द्वारा स्वयं ही लिखी हुई है / कुल पाँच पत्रों में लिखित इस प्रति का प्रथम पत्र नष्ट हो गया है। इसलिए प्रारम्भ से द्वितीय शतक के तेरहवें श्लोक के उत्तरार्ध के प्रथम अक्षर तक के पाठ का मिलान नहीं किया जा सका है। पाचवें पत्र की द्वितीय पृष्ठ की आठवीं पंक्ति में यह कोश पूर्ण होता है। प्रत्येक पष्ठि में 15 पंक्तियां हैं / प्रत्येक पंक्ति में कम से कम 41 तथा अधिक से अधिक 56 प्रक्षर हैं। ऊपर बतलाई गई दो प्रतियों के आधार पर 'सिद्धकोश' का सम्पादन किया है। कतिपय स्थानों में पाठभेद हैं / उनमें मुख्यरूप से 'य०' प्रति के पाठ मूल में दिए गए हैं। तथापि किसी-किसी स्थान पर 'ज' प्रति के पाठों को भी प्राधान्य दिया गया है / उ० श्रीयशोविजय जी ने स्वहस्त से लिखित 'वैराग्यरति' की प्रति में एक ही स्थान के विकल्प रूप में स्वयं योजित पाठभेद अनेक स्थानों में लिखे हैं। इससे 'जं.' प्रति में आने वाले पाठभेद कदाचित सुगमता के लिए स्वयं ही लिखे हों ऐसी प्रति के प्राधार पर यह 'ज०' प्रति लिखी गई हो यह सम्भव है / 'ज०' प्रतिकर्ता के स्थितिकाल में ही लिखी गई होने के कारण इसमें अन्यकृत पाठभेद होने की शक्यता कम सम्भव है यह भी स्वाभाविक है। ___ 'जं.' प्रति सम्पूर्ण होने से यह प्रस्तुत कोश की पूरी वाचना देती है। 'य.' प्रति कर्ता द्वारा लिखित है तथा 'जं०' प्रति में आने वाले किसी प्रशुद्ध स्थान पर शुद्ध पाठ देती है / इस प्रकार दोनों प्रतियों का बहुत महत्त्व है। प्रस्तुत सम्पादन में प्रत्येक शब्द के बाद जो क्रमांक दिए गए हैं वे दोनों प्रतियों में हैं. उसी रूप में हैं /
SR No.004489
Book TitleArshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy