________________ ( 36 ) ... न्यायविशारद, महोपाध्याय, श्रीमद्यशोविजयजीगणि विरचित सिद्धनामकोश सम्पादक-पं० अमतलाल मोहमलाल भोजक महोपाध्याय श्रीयशोविजयकृत अनेक ग्रन्थ अप्राप्त हैं उनमें यह सिद्धनामकोश' उपलब्ध हुमा है तथा उसे यहां दो प्रतियों के आधार पर सर्वप्रथम सम्पादित किया है / 1. जं० संज्ञक प्रति—'आर्य श्री जम्बूस्वामी जैन मुक्ताबाई अागममन्दिरसत्क पू० प्राचार्य श्री विजय रैवतसूरि.संगृहीत पूज्यपाद प्राचार्य श्री जम्बूसूरि हस्तलिखित “चिद्रञ्जन कोश डभोई (गुजरात)" में प्रस्तुत सिद्धनामकोश की प्रति सुरक्षित है, इसकी पत्र संख्या 6 है। प्रत्येक पृष्ठि में 15 पंक्तियां हैं . छठे पत्र की पहली पृष्ठि की आठवीं पंक्ति में सिद्धनामकोश पूर्ण होता है। प्रत्येक पष्ठि की छठी से दसवीं पंक्ति से मध्यभाग में लेखक ने अक्षर लिखे बिना खाली भाग रखकर शोभन (रिक्ताक्षर शोभन) बनाया है जो कि इस प्रकार है-छठी से दसवीं पंक्ति के मध्यभाग में क्रमशः 3-6-6-6-3 अक्षरों जितना रिक्त भाग है। प्रत्येक पत्र की द्वितीय पष्ठि के दाहिने अश में दिये गये हांसिये के नीचे वाले भाग में उस-उस पत्र का क्रमांक लिखा है। पौर बायीं ओर के हांसिये के ऊपरी भाग में 'सिद्धनाम' लिखकर इस कृति का नाम सूचित किया है तथा उसके नीचे उस-उस पत्र का क्रमांक लिखा है। प्रत्येक पृष्ठ पर नीचे का आधा इंच भाग रिक्त रखा और पार्श्वभागों में एक इंच भाग रिक्त है अर्थात् प्रत्येक पृष्ठ में 93431 इंच लम्बाई, चौड़ाई में यह लिखा हुआ है / __ प्रत्येक पृष्ठि की पंक्ति के प्रारम्भ और अन्त को प्रावृत करके खड़ी दो लाल रेखाएं खींची हैं / लम्बाई-चौड़ाई 634 41 इंच प्रमाण है / अन्त में"लिखितं राजनगरे सं० 1736 वर्षे इति श्रेयः” इस प्रकार संक्षिप्त पुष्पिका है। कर्ता के स्थितिकाल में यह प्रति लिखी हुई है / "सिद्धनाम कोश" की