________________ ( 33 ) चौबीसियों के तीर्थङ्करों तथा बीस विहरमाण तीर्थङ्करों को नमस्कार किया गया है। यह वीरसमाज अहमदाबाद से छपा था और बाद में जैन धर्म प्रसारक सभा ने भी छपाया है। 8. जिनसहस्रनाम-स्तोत्र-प्रज्ञातनामा (?) इस कृति का प्रारम्भ 'स्वयम्भुवे नमस्कृत्य' से होता है / 160 पद्यों में स्तोत्र पूर्ण हया है। इसकी पाण्ड लिपि भाण्डारकर प्रातातिदया संस्थान-पूना में है। इस स्तोत्र पर दि० अमरकीर्ति, दि० विश्वसेन, दि० श्रतसागर तथा एक अन्य अज्ञात लेखक ने टीकात्रों की रचना की है। 6. पावसहस्रनाम स्तोत्र - कल्याणसागरसूरि (अज्ञात) अंचल गच्छ के धर्ममूर्ति के शिष्य की यह रचना है / 'जिनरत्नकोश' (बि० 1, प०२४७) में पाश्र्वनाथ-अष्टोत्तर शतनाम नामक कृति का श्रीकल्याणसागरगणि के नाम से उल्लेख है। इसकी एक पाण्ड लिपि छाणी के भण्डार में है।। * 10. पद्मावती सहस्रनाम स्तोत्र ( ? अज्ञात ) पार्श्वनाथ के तीर्थ की शासनदेवी 'पद्मावती के 1000 नामों को प्रस्तुत करने वाली यह कृति 'जिनरत्नकोश' (वि० 1, पृ० 235) में निर्दिष्ट है। .......... 11. सूर्यसहस्रनामस्तोत्र- भानुचन्द्र गरिण :१७वीं शती प्रा० ई०) - यह कृति मूलत: गद्यात्मक है / इसके प्रारम्भ में एक तथा अन्त में चार पद्य हैं। इस पर लेखक की स्वोपज्ञ. वृत्ति भी बनी हुई है। इसका प्रकाशन वापी जैन युवकमण्डल' की ओर से वि० सं० 1968 में हरा है। . . 12. सिद्धसहस्रनामकोश- श्रीयशोविजयजी उपाध्याय . (ई० स० 1682) इस प्रकार की ग्यारह कृतियों की परम्परा में श्रद्धेय श्रीयशोविजय