________________ . ( 31 ) है जिनमें प्राशाधर कृत.'जिनसहस्रनाम स्तोत्र' तथा 'भाषासहस्रनामस्तोत्र' (बनारसीदास रचित) भी मुद्रित हैं। 3. अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय- श्रीहेमचन्द्राचार्य (१२वीं शती) इसका अपरनाम 'जिनसहस्रनामस्तोत्र' भी है। इसके प्रथम शतप्रकाश, द्वितीय शतप्रकाश क रूप में दस प्रकाश हैं। प्रथम शतक के द्वितीय पद्य में तथा दसवें शतक के तेरहवें पद्य में अरिहंत के 1008 नामों का उल्लेख है जबकि दसवें प्रकाश के 14 वें श्लोक में 'जिननामसहस्रक' ऐसा कहा गया है / दसवें प्रकाश के ही 14-16 तक के पद्यों में इस स्तोत्र के श्रवण, पठन और जप के फलों का निर्देश है। ___ इसका प्रकाशन 'जैनस्तोत्रसन्दोह' (भाग 8, पृ० 13) में कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्र सूरि के नाम से हुआ है। . 4. जिनसहस्रनामस्तोत्र - दि०. पं० प्राशाधर (१३वीं शती) सल्लक्षण के पुत्र एवं कलिकालिदासोपनामक पं० पाशाधर की इस कृति में दस शतक हैं और इस पर स्वयं कवि ने स्वोपज्ञ वत्ति की रचना भी की है। __ आदि पुराण के समान ही इसमें दस शतक हैं जिनके नाम क्रमशः 1. गर्भ, 2. जन्म, 3. दीक्षा, 4. ज्ञान, 5. नाथ, 6. योगि, 7. निर्वाण, 8. ब्रह्म, 6. बुद्ध और 10. अन्तकृद्-शतक हैं। सभी नामों की रचनाशैली क्रमबद्ध है कोई भी नाम पुनरुक्त भी नहीं है। केवल एक नाम 'अमत' दो बार आया है जिसे लिङ्ग-भेद और अर्थभेद से अपुनरुक्त कहा है / - दि० श्रुतसागर तथा अन्य किसी अज्ञात विद्वान् ने भी इसकी टीकाएं बनाई हैं। यह जिनसेन के जिनसहस्रनाम के साथ प्रकाशित हुआ है।