________________ ( 26 ) किमेक देवतं लोके किं वाऽप्येकं परायणम् / स्तुवन्तः कं कमर्चन्तः प्राप्नुयुर्मानवाः शुभम् / / 24 // को धर्मः सर्वधर्माणां भगतः परमो मतः / इत्यादि / और इन पांचों प्रश्नों का उत्तर देते हुए भीष्म ने कहा था कि- . स्तुवन्नामसहस्रण पुरुषः सततोत्थितः / इत्यादि / ___ इस प्रकार अन्यान्य भगवत्प्राप्ति के उपायों में सहस्रनाम-स्मरण भी महत्त्वपूर्ण है / वहीं आगे 'विष्णोर्नामसहस्र मे शृणु पापभयापहम्' इत्यादि कहकर सहस्रनाम-स्मरण से प्राप्य अनेक फलों का और भी विस्तार से वर्णन किया है। वेदों में 'सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् / ' इत्यादि मन्त्र से सहस्र के उपलक्षण से अनन्त शीर्षादि का संकेत स्पष्ट ही है। तथा रुद्राष्टाध्यायी में शिव की उपासना हेतु निर्दिष्ट 'शतरुद्रिय' के मन्त्र भी इसके सूचक हैं / तान्त्रिक उपासना में प्रातः, मध्याह्न, सायं, तुरीया और भासारूप जो पाञ्चकालिक साधना होती है उसमें भासाकाल में प्रत्येक देव का ध्यान विराड्रूपात्मक होता है, जिसमें सहस्र-अनन्त का संकेत स्पष्ट है / यौगिक दष्टि से शारीरिक चक्रों में सहस्रार में सहस्रदल की कल्पना और प्रत्येक दल में मातका के बीस आवर्तनों में प्रत्येक वर्ण की स्थापना भी सहस्र' की संकेतिका ही है। सूर्य को सहस्र किरणों वाला, इन्द्र को हजार नेत्रवाला. शेषनाग को हजार फणोंवाला, भगवती को हजार भुजाओं वाली, गरुड़, शरभ, नृसिंह आदि देवों को हजार दाढ़ों वाला, कार्तवीर्यार्जुन और बाण को हजार भुजाओं वाला कहना भी 'सहस्रनाम' की प्रेरणा का स्रोत रहा है।