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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटोका-विराजितम् राजा-( शकुन्तलां विलोकयन्नात्मगतं-) किं खलु यथा वयमस्यामियमप्यस्मान् प्रति तथा स्यात् ? / अथ वा लब्धाऽवकाशा में 'मनोवृत्तिः / कुतःवाचं न मिश्रयति यद्यपि मद्वचोभिः, कर्णं ददात्यैवहिता मयि भाषमाणे / कामं न तिष्ठति मदाननसंमुखीये, भूयिष्ठमन्यविषया न तु दृष्टिरस्याः // 33 // तवायत्ता= त्वदधीना / यदा रोचेत = यदा मे रुचिः, समीहा वा स्यात् / यथा = अनुरक्ताः / तथा = प्रणयिनी / मदासक्ता / लब्धोऽवकाशो यया सा-लब्धावकाशा = लब्धावसरा / जाताश्वासेति यावत् / अस्मास्वनुरक्तेयमिति ज्ञातमस्माभिरित्यर्थः। कुतःकुत एतदवगतमत आह-वाचमिति / यद्यपि-मद्वचोभिः = मद्वाक्यैः सह, वाचं = स्ववाणी, न मिश्रयति-नानुसन्धत्ते, ( मत्प्रश्नादेरुत्तरं न प्रतिपद्यते)। मया सह नालपतीति यावत् / तथापि-मयि भाषमाणे = किमपि कथयति सति, अवहिता = सावधाना सती, कर्ण ददाति = निभृतं शृणोति / किञ्च-काम = सत्यमेतत् यद्यपि-मदाननसंमुखी = मन्मुखसंमुखीना, न तिष्ठति, तु = तथापि, अस्या दृष्टिः-जयनं तु, भूयिष्ठ = प्रायः, अन्यो विषयो यस्याः सा अन्यविषया = मन्मुखातिरिक्तपदार्थविषयिणी / न = नैवास्तीत्यर्थः // राजा--(शकुन्तला को देखता हुआ, मन ही मन ) मेरा जैसे इसके प्रति अनुराग हो गया है, क्या इसका भी मेरे प्रति वैसा ही अनुराग होगा? / अथवा-मेरी मनोवृत्ति को अवकाश (आधार ) प्राप्त हो ही गया है। अर्थात् इसका भी मेरे प्रति वैसा ही अनुराग है, जैसा इसके ऊपर मेरा है-यह मानने का अवश्य कारण है। ___ क्योंकि यद्यपि मेरी बातों का उत्तर देकर यह मेरे साथ वार्तालाप तो नहीं करती है, परन्तु मैं जब कुछ बोलता हूँ, तो सावधानता पूर्वक कान देकर, यह मेरी 1. प्रार्थना' / 2. ददात्यभिमुखं' / 3. 'संमुखीना' /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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