________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् राजा-भद्रे ! वृक्षसेचनादेवाऽत्र'भवती परिश्रान्तां तर्कयामि / तथा ह्यस्याःस्रस्तांऽसावतिमात्रलोहिततलौ बाहू घटोत्क्षेपणा दद्यापि स्तनवेपथु जनयति श्वासः प्रमाणाधिकः / बेद्धं कर्णशिरीषरोधि वदने धर्माम्भंसां जालकं, . बन्धे स्रंसिनि चैकहस्तयमिताः पर्याकुला मूर्द्धजाः // 32 // आभ्यां-ते वृक्षसेचनके = वृक्षसेचनकघटौ / वारद्वयं वृक्षसेचनमिति यावत् / वृक्षद्वयसेचनमिदानीमप्यवशिष्यते तवेति चाऽऽशयः / निवर्तयति = प्रत्यानयति / भद्रे ! = सुशीले ! अत्रभवती = माननीयां शकुन्तलां / तर्कयामि = अवगच्छामि / स्रस्तांसाविति / घटस्योत्क्षेपणात् = उत्थापनात्, स्रस्तौ = शिथिलो, अंसौ = स्कन्धौ यथोस्तौ / अतिमात्रं लोहितं . तलं चयोस्तौ = अतितरां लोहित करतलौ, बाहू = भुजौ, अद्याऽपि = इदानीमपि वर्त्तते / घटोत्क्षेपणादेव / प्रमाणेनाधिकःप्रमाणाधिकः = भृशमायतः, श्वासः = उच्छासः, अद्यापि-स्तनयोर्वेपथु = कम्पं, जनयति = करोति / घटोत्क्षेपणादेव च-अद्यापि-वदने = मुखे, कर्णभूषणं शिरीषं-कर्णशिरीषं, तद्रोद्धं शीलमस्य-कर्णशिरीषरोधि = कर्णाभरणशिरीषकुसुमरोधकं, धर्मस्याम्भसां = स्वेदवारिकणानां, जालमेव .जालकं = बिन्दुकदम्बक, बाकी है, पहिले उनसे अपने को छुड़ाले तब जाना। [वृक्षसेचनक = वृक्ष सींचने का वादा / अर्थात् तेरे पारी के दो वृक्ष सींचने और बाकी हैं। या घटों के समान उन्नत दो स्तन तूं छिपाए लिए जा रही है-यह भो अर्थ उपहास के लिये हो सकता है। ( जबरदस्ती शकुन्तला को पकड़कर खींचती है)। राजा-हे भद्रे ! वृक्षों के सींचने से आपकी सखी थक गई सी मुझे मालूम हो रही हैं। क्योंकि-घड़े उठाने से इसके दोनों हाथ कन्धे पर से कुछ नीचे की ओर लटक आये हैं। दोनों हाथों की हथेलियाँ भी लाल हो गई हैं। परिश्रम करने से श्वास भी लम्बा 2 चल रहा है, जिससे इसके दोनों स्तन भी 1 'वृक्षसेचनादेव परिश्रान्तामत्रभवती लक्षये' / 2 'स्रस्तं' / 3 'म्भसा' /