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________________ wwwwwwwwwwwww ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटोका-विराजितम् 521 अङ्गुलीयकदर्शनाऽऽरूढस्मृतिरूढपूर्वामवगतोऽहम् / तच्चित्रमिव मे प्रतिभाति ! / यथा गजे साधु समक्षरूपे, तस्मिन्नतिक्रामति संशयः स्यात् / पदानि दृष्ट्वाऽथ भवेत्प्रतीति स्तथाविधो मे मनसो विकारः!॥३१॥ निराकरणानन्तरम् / ऊटपूर्वा = पूर्व विवाहितां / तस्य = काश्यपस्य / दुहितरं = तनयाम् / अवगतः = स्मृतवान् / चित्रम् = आश्चर्यम् / यथेति / समक्ष रूपमाकृतिर्यस्य तस्मिन्-समक्षरूपे = प्रत्यक्षविषये / तस्मिन् = गजे / अपक्रामति = गच्छति सति / 'गजो नेति संशयः स्यात् = 'गजोऽयं नवे'ति संशयः / 'गजो नेति भ्रान्तिर्वा भवेत् / तु = पुनः। पदानि = हस्तिपदचिह्नानि, दृष्ट्वा च / प्रतीतिः = 'गज एवायमासी दिति निश्चयो-यथा स्यात्तथाविधो मे मनसो विकारः-चित्तविभ्रमोऽयमिति चित्रमिव मे भातीति सम्बन्धः। यद्वा-समक्षरूपे 'गजो न वेति सन्देहः, अपक्रामति = चलति सति तु, तच्चरणचिह्नं दृष्ट्वा गज इति यथा निर्णयः-इत्यन्वयः / ___साक्षादुपस्थितायां त्वस्या भ्रमः, अस्या अङ्गुलीयकेन च तन्निवृत्तिरिति प्रकृतेऽपि योजनीयम् / [ निदर्शनाऽनुप्रासः / उपजातिः ] // 31 // मैंने बहुत बड़ा अपराध किया है। फिर इस अंगठी को देखकर मुझे स्मरण हुआ, कि-मैंने शकुन्तला से अवश्य विवाह किया था। यह बात मुझे बड़ी ही आश्चर्यजनक मालूम हो रही है / क्योंकि मेरा यह मन का विकार (भूल) तो ऐसा हा विचित्र है, जैसे किसी को साक्षात् हाथी को सामने से जाते हुए को देखकर भी यह हाथी है, या नहीं' यह सन्देह हो जाए, और फिर उस हाथी के पैरों (खोज, पदचिह्नों) को देखकर यह स्मरण हो, कि-'वह हाथी ही था, मेरी ही भूल थी, जो मैंने उस हाथीको नहीं पहिचाना' / अतः यह क्या बात थी ? / कृपया मेरा सन्देह दूर करिए // 13 //
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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