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________________ 510 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [सप्तमोशकुन्तला उत्थेदु अजउत्तो / पूर्ण मे सुहप्पडिबन्धों पुराकिदं तेसु दिअसेसुं परिणाममुहं आसि, जेण साणुक्कोसो वि अजउत्तो * मइ विरसो संवुत्तो। [उत्तिष्ठत्वार्यपुत्रः। नूनं मे सुखप्रतिबन्धकं पुराकृतं तेषु दिवसेषु परिणाममुखमासीत् , येन साऽनुक्रोशोऽप्यार्यपुत्रो मयि विरसः संवृत्तः]। . (राजा-उत्तिष्ठति ) / शकुन्तला-अध कधं अजउत्तेण सुमरिदो दुक्खभाई अवे जणो ? [ अथ कथमार्यपुत्रेण स्मृतो दुःखभाग्ययं जनः ?] / / तिरस्करोति / [दृष्टान्तः। भ्रान्तिमान् / अर्थान्तरन्यासः / काव्यलिङ्गं वा / प्रसादो नाम सन्ध्यङ्गम् / अनुनयो नाम भूषणञ्च / 'हरिणी वृनम्' ] // 24 // सुखस्य प्रतिबन्धकं = सुखविलोपि / पुराकृतम् = अदृष्टं / तेषु दिवसेषु = यदा भवताऽहं तिरस्कृता तदात्वे / परिणाममुखं = फलोन्मुखं / सानुक्रोशः = कृपापरोऽपि / विरसः = क्रूरः। दुःखं भजति, तच्छीलः दुःखभागी = में भी इसी प्रकार विपरीत ज्ञानवाली हो जाती हैं, जैसे अन्धा मनुष्य अपने शिर में किसी के द्वारा पहिनाई गई माला को भी साँप समझकर दूर फेंक देता है / अतः अज्ञान के ही कारण मैंने उस समय तुमारा प्रत्याख्यान कर दिया था। उसे अब तुम अपने मन से बिलकुल निकाल दो और उस बात को तुम भूल जाओ // 24 // .. (राजा-शकुन्तला के पैरों में पड़ता है)। शकुन्तला-हे आर्यपुत्र ! आप उठिए / उन दिनों (उस समय) मेरे सुख का प्रतिबन्धक जरूर कोई पूर्वकृत पाप ही उदय हो गया था, जिससे इस प्रकार अत्यन्त दयालु स्वभाव के होते हुए भी आपने मेरे प्रति इतनी उदासीनता दिखलाई थी, और मेरा परित्याग कर दिया था। [राजा-उठता है / शकुन्तला--अच्छा तो फिर आपने इस दुखिया का स्मरण कैसे किया ? / अर्थात्-मुझसे किए हुए विवाह की बात आपको कैसे याद आई ? / /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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