________________ 498 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [सप्तमो-कथं पुनरात्मगत्या मानुषाणामेष विषयः / तापसी-जधा भद्दर हो भणादि / किन्तु अच्छरासम्बन्धेण उण इमस्स. बालअस्स जणणी इध जेव देवगुरुणो तोवणे पसूदा। [यथा भद्रमुखो भणति / किन्त्वप्सरःसम्बन्धेन पुनरस्य बालकस्य जननी इहैव देवगुरोस्तपोवने प्रसूता] / राजा--( स्वगतम्- ) हन्त ! द्वितीयमिदमाशाजननम् / द्यन्ते / [नियता = नियमचारिणी, पुत्रादिरहिता, एका पतिव्रता धर्मपत्नी सहचरी येषु तानि-नियतैकपतिव्रतानि = नियमप्रवणपतिव्रताशोभितानि-तरुतलानीति-पाठान्तरेऽर्थः ] / एवञ्च तदात्वे हि पुत्राऽसम्भवो दर्शितः। यद्वा-नियतैकपतिव्रतानि = ईश्वर एव एकः पतिव्रतं = ध्येयं येषान्तानि / ईश्वरैकस्वामिकानि / अस्वामिकानीत्यर्थः / / रूपकाऽनुप्रासौ / 'मालभारिणी वृत्तम् ] // 20 // अस्त्येतत् (श्लोकोक्तं ) पौरवाणां कुलव्रतं / पुनः = तथापि / एषः= हेमकूटः / आत्मगत्या = स्वभावगत्या / अविषयः = गमनाऽयोग्यः / मनुष्याणां स्वभावत एवाऽयमगम्य इति कथमयं मानुषो बालोऽत्रागत इति शङ्काशयः / यथा भद्रमुखो भणति = यथाभवान् वदति तथैव / भवदुक्तं सत्यमेव / तथापि अप्सरसः सम्बन्धेन = अप्सरोनामकदेवजातिविशेषसम्बन्धेन / बालकस्य = बालस्य / इह = अत्रदेवगुरोः -कश्यपस्य / तपोवने = आश्रमे / मारीचाश्रमे इति यावत् / प्रसूता = एनं बालं प्रसुषुवे / इदम् = अप्सरःसम्बन्धकथनं / प्रथमं पौरववंश्यतया, द्वितीयमप्सरः(संन्यासी के व्रत) को धारण करनेवाले वृक्षों के मूल को ही अपना घर बनाकर तपोवनों में ही निवास करते हैं / / 20 / / . परन्तु इस दिव्य प्रदेश में अपनी गति से ( स्वतः) मनुष्यों का आगमन कैसे सम्भव है ? / अर्थात्-इस बालक के पिता-माता, तथा यह बालक मनुष्य होकर भी यहाँ कैसे आ पहुंचे है। तापसी-हाँ, आप ठीक कहते हैं, यह प्रदेश मनुष्यों से स्वयं तो अगम्य ही है / परन्तु इसकी माता ने अप्सरा की पुत्री होने के कारण ही देवताओं के गुरु कश्यपजी के इस आश्रम में आकर इस बालक का प्रसव किया है (इसको जन्म दिया है)। - राजा-(मन ही मन) अहा ! हा! यह तो दूसरी आशाजनक बात हुई। (पहिली आशाजनक बात तो इस बालक का पौरव वंश का होना है, और