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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 483 राजा--नेनु विस्मयादुभयमवलोकयामि। प्राणानामनिलेन वृत्तिरुचिता सत्कल्पवृशे वने !, तोये काञ्चनपद्मरेणुकपिशे पुण्याभिषेकक्रिया ! / ध्यानं रत्नशिलागृहेषु, विबुधस्त्रीसंनिधौ संयमो !, यद्वाञ्छन्ति तपोभिरन्यमुनयस्तस्मिस्तपस्यन्त्यमी ! // 12 // उभयमिति / भोगभूमि, तत्रापि तपश्चर्यापरान्मुनीन्, द्वयमेतदाश्चर्येण पश्यामीत्यर्थः / प्राणानामिति। सन्तः कल्पवृक्षा यत्र, तस्मिन्-सत्कल्पवृक्षे = सकलभोगप्रद कल्पपादपशोभितेऽपि / वने = अरण्ये / आश्रमे / प्राणानाम्-उचिता = अवश्यकर्त्तव्या / वृत्तिः = प्राणधारणक्रिया / जीवनमिति यावत् / अनिलेन = वायुना / न तु-नानाविधैः कल्पवृक्षकल्पितैर्भोज्य भक्ष्यादिभिः / किञ्च-काञ्चनानां पद्मानां रेणुभिः कपिशं, तस्मिन् = स्वर्णकमलपरागपिङ्गलवणे / तोये = जले / धर्माऽर्थमभिषेकक्रिया = धमाचरणार्थमेव स्नानादिकं, न तु तत्र देवाङ्गनाभिः सह जलक'डादिकामोपभोगार्थम् / किञ्च रत्नशिलानां तलेषु-ध्यानं = रत्नशिलाफलकेष्वपि ध्यानमाचरन्ति, न तु तत्र विहरन्ति / विबुधानां स्त्र णां संनिधिस्तस्मिन्-विबुधस्त्रीसन्निधौ = देवाङ्गनाऽभ्यासेऽपि / संयमः = इन्द्रियनिग्रहः / न तु ताभिः सह सुरतक्रीडासम्भोगादिकम् / तदेवम् अन्ये सुनयः अन्ये तपास्वनः / तपोभिः = तपःफलतया / यत् = यत् स्थानं, स्वर्गभुवं वाञ्छन्ति = कानन्ति / इच्छन्ति / सुराङ्गना राजा --यहाँ मैं इन दोनों बातों को आश्चर्यान्वित हो कर देख रहा हूँ कि जहाँ सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करने वाले कल्पवृक्ष विराजमान हैं, वहाँ भी ये ऋषिलोग केवल वायु का ही भक्षण करके प्राणों को धारण कर रहे हैं। अर्थात् उपवास करते हैं / और सोने के पद्मों के पराग से पीले रंगे हुए दिव्यजल में भी पुण्यसञ्चयार्थ ही ये स्नान कर रहे हैं / रतिक्रीडा जलक्राडा यदि नहीं करते हैं / और रत्नों की शिलाओं से विरचित भवनों में, तथा कन्दराओं में बैठकर भी ये लोग ध्यान लगाते हैं / और देवाङ्गनाओं (दिव्यस्त्रियों ) के बीच में रहकर भी ये संयम ( इन्द्रियनिग्रह, ब्रह्मचर्य ) का हा पालन करते हैं ! / और अन्य मुनिगण तपस्या करके जिन वस्तुओं को ( स्वर्ग के भोगों को प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हीं वस्तुओं के बाच में रहकर भी ये तपस्या करते हैं ! / इन दोनों बातों को (भोगसामग्री और त्याग को) यहाँ एक साथ देखकर मैं तो . 1 कचिन्न। 2 'काङ्क्षन्ति' पा० /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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