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________________ 476 अभिज्ञानशाकुन्तलम् [ सप्तमोसंन्धानं तनुभागनष्टसलिलव्यक्त्या व्रजन्त्यापगाः, केनाप्युत्क्षिपतेव पश्य भुवनं मत्पार्धमानीयते ! // 8 // तरवः / स्कन्धानां = प्रकाण्डानाम् / 'अस्त्री प्रकाण्डः स्कन्धः स्या' दित्यमरः / उदयात् = प्राकट्यात् / पर्णानामभ्यन्तरे लीनतां = पत्रमयतां / पत्रान्तर्लयं / विजहति = त्यजन्ति / प्रकटीभवन्तीत्यर्थः। आपगाः = सरितश्च / तनुभागेषु नष्टस्य सलिलस्य व्यक्त्या-तनुभागनष्टसलिलव्यक्त्या क्वचित्तनुतराणां जलधाराणामदृश्यतया, क्वचिच्च विपुलजलप्रवाहस्य दृश्यतया, विच्छिन्नप्रवाहतया लक्ष्यमाणा अपि नद्यःक्रमात् = शनैः शनैः, तनुतरनद्यादिप्रवाहस्यापि निकटतया स्पष्टं दर्शनात्-सन्धानम् = अविच्छिन्नप्रवाहतामिव / व्रजन्ति = भजन्ते / पाठान्तरे-तनुभावेन = तनुत्वेन, नष्टम् = अदृश्य, सलिलं = जलधारा यासान्ताः-तनुभावनष्टसलिलाः / आपगाः= नद्यः / सन्तानैः = विस्तारेण / व्यक्ति = स्पष्टता, ब्रजन्ति = गच्छन्तिइत्यर्थों बोध्यः / भुवन = जगच्च, भूवलयञ्च / उत्क्षिपतेव = कन्दुकवदुत्क्षिपतेव / केनापि = केनापि अदृश्येनेव | मत्पाश्व = मन्निकटम् / आनीयते = प्राप्यते / उत्क्षिप्त कन्दुकवद् भूवलयं सहसैव अस्मन्निकटमागच्छतीत्यर्थः / इति पश्य = एतद्विलोकय / [ उत्प्रेक्षा। स्वभावोक्तिः / काव्यलिङ्गम् / अनुप्रासः / 'शार्दूलविक्रीडित वृत्तम् ] // 8 // खण्डित सी मालूम होती थीं, वे ही अब धीरे-धीरे कम जल वाले प्रवाह भाग के भी स्पष्ट हो जाने से, अखण्डित एवं जुड़ी हुई सी मालूम हो रही हैं / और यह भूलोक भी मानों किसी के द्वारा नीचे से ऊपर की ओर जोर से उछाला जाकर गेंद की तरह ही हमारे पास दौड़ा चला आ रहा है। भावार्थ-आकाश से नीचे उतरते समय पहिले पर्वतों की चोटियाँ हो दिखाई देती हैं, पीछे धीरे-धीरे पृथ्वी दिखाई देती है, अतः ऐसा मालूम होता है, मानों-पृथ्वी पर्वतों की चोटियों से धीरे-धीरे नीचे उतर रही है। और पहिले वृक्षों की पत्तियाँ ही दिखाई देती हैं, फिर उनके पेड़ ( तना) दिखाई पड़ते हैं। नदियाँ भी पहिले बीच 2 में खण्डित सी मालूम होती हैं, क्योंकि-नदियों का भी जहाँ पाट चौड़ा है, जहाँ जल ज्यादा है, वही भाग पहिले दीखता है। और कम जल वाला, कम चौड़े पाट वाला भाग पहिले नहीं दिखलाई देता हैं, अतः नदियाँ भी बीच 2 में टूटी हुई सी पहिले मालूम होती हैं, और पीछे धीरे धीरे निकट आने से, पूरी जुड़ी हुई सी मालूम होने लगती है। और ज्यों ज्यों रथ नीचे उतरता है त्यों त्यों भूमण्डल भी मानों ऊपर को उछलता हुआ हमारे पास आ रहा है, ऐसा मालूम होता है // 8 // 1 'सन्तानैस्तनुभावनष्टसलिला व्यक्ति भजन्त्यापगाः' पा०। .
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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