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________________ 462 अभिज्ञानशाकुन्तलम् [षष्ठोस भवानात्तशस्त्र एवेदानी देवरथमारुह्य विजयाय प्रतिष्ठताम् / राजा-अनुगृहीतोऽस्म्यनया मघवतः सम्भावनया / अथ माधव्यं प्रति भवता किमेवं प्रयुक्तम् ? / ___ मातलिः-( सस्मितं-) तदपि कथ्यते–किञ्चिन्निमित्तादपि मनःसन्तापादायुष्मान्मया विकृतो दृष्टः / पश्चात्कोपयितुमायुष्मन्तं तथा कृतवानस्मि / कुतः ? ज्वलति चलितेन्धनोऽग्नि विप्रकृतः पन्नगः फणां कुरुते / __स:= ईशांतिशयितशक्तिशाली भवान् / आत्तं शास्त्रं येनासौ-आत्तशस्त्रः = गृहीतशस्त्रः। विजयाय = दानवविजयाय / प्रतिष्ठताम् = अद्यैव प्रस्थानमङ्गलं करोतु / अनया = स्मरणरूपया / सम्भावनया = सत्कारेण / अनुगृहीतः = अनुकम्पितः / अथेति-प्रश्ने / माधव्यं प्रति = विदूषकं प्रति / एवं = ताडनघर्षणादिकं / किञ्चिन्निमित्त यत्र तस्मात्-किञ्चिन्निमित्तात् =कुतोऽपि हेतोः। समुस्थितान्मनःसन्तापात् / अत्र मातलिना राज्ञावियोगक्लेशवर्द्धकतया शकुन्तलानाम न गृहीतमित्यवधेयम् / विकृतः= विह्वलः / ज्वलतीति ।चलितमिन्धनं यस्यासौ-चलितेन्धनः = विपर्यस्तकाष्ठः / इसलिए-आप शस्त्र लेकर, इसी समय, इस देवरथ पर चढ़कर विजय के लिए प्रस्थान करिए। राजा–भगवान् इन्द्र की इस प्रकार मेरे ऊपर हुई कृपा से मैं बहुत ही अनुगृहीत हुआ हूँ। अच्छा, मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ, कि-आपने इस बेचारे माधव्य के साथ ऐसा ( अनुचित ) व्यवहार क्यों किया ? / मातलि-(हँसकर) इसका कारण भी मैं कहता हूँ, सुनिए-किसी भी कारण से हुए मन के सन्ताप से, आपको मैंने कुछ खिन्न और अन्यमनस्क देखा / तब आपको क्रोध दिलाने व उत्तेजित करने के लिए ही मैंने यह नाटक रचा था। क्योंकि-अग्निमें जब इंधन डाला जाता है, या उसमें गिराया हुआ इंधन
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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