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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 459 मातलि:-आयुष्मन् ! कृताः शरव्यं हरिणा तवाऽसुगः, ___ शरासनं तेषु विकृष्यतामिदम् / प्रसादसौम्यानि सतां सुहृजने, पतन्ति चझूषि, न दारुणाः शराः // 35 // राजा-( ससम्भ्रममस्त्रमुपसंहरन् - ) अये मातलिः ! / स्वागतं देवराजसारथे / कृता इति / हरिणा = इन्द्रेण / असुराः = राक्षसा एव / तव-शरव्यं = लक्ष्य-कृता / 'लक्ष्य, लक्षं, शरव्यञ्चे'त्यमरः / तेषु = असुरेष्वेव / इदं शरासनंधनुरिदं / विकृष्यताम् = सज्यं क्रियताम् / यतः सतां = साधूनां / सुहृजने = स्वमित्रादिबन्धुवर्गे / प्रसादेन सौम्यानि–प्रसादसौम्यानि = प्रसन्नमधुराण्येव / चक्षूषि - लोचनानि / पतन्ति = निपतन्ति / दारुणाः = विदारणदारुणाः। शराः= बाणास्तु / न = नैव पतन्ति / अतस्त्वमपि अस्मासु सुहृत्सु, बन्धुवर्गेषु च स्नेहमसूणानि लोचनानि निक्षिप, न खलु तव शरपातोचिता वयमिति भावः / [ काव्यलिङ्गम् / परिसङ्ख्या / अर्थान्तरन्यासश्च / 'वंशस्थं वृत्तम्' ] // 35 // अये ! मातलिः = अहो मातलिरयं, न पिशाचादिरित्याश्चर्यम् / देवराजस्य = मघवतः / सारथिः = सूतस्तमम्बुद्धौ चात्रेदं रूपम् / षष्ट्यन्तं वा क्वचित्पठ्यते / - मातलि-हे आयुष्मन् ! भगवान् इन्द्र ने आपके बाणों के लिए तो लक्ष्य असुरों को ही बनाया है, अतः उन असुरों पर ही इस धनुष को आप चढ़ाइएगा। और अपने सुहृज्जनों पर तो सज्जनों के कृपा से सौम्य (शान्त) और असम नेत्र (दृष्टि ही पड़ा करते हैं, दारुण (कठोर) बाण नहीं (पड़ा करते हैं)। और हम तो आपके सुहृद् हैं, अतः हमें तो प्रसन्न दृष्टि से ही आप देखिए। इस धनुष को तो असुरों पर तानियेगा / ( अर्थात् अभी तो धनुष को विश्राम ही करने दीजिए)। राजा--( जल्दी से हड़बड़ा कर, बाण को उतारता हुआ-) हैं ! ये तो इन्द्र के सारथि मातलि हैं ! / हे देवराज इन्द्र के सारथे ! आपका स्वागत है / आइए, आइए। 1 'सारथे: पा० /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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