SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 448 ___ अभिज्ञानशाकुन्तलम्- - [षष्ठो चतुरिका-( ससम्भ्रमम्-) समस्ससदु समस्ससदु भट्टा / [ (ससम्भ्रमं-) समाश्वसितु समाश्वसितु भर्ता] / . सानुमती-किं दाणिं ज्जेव णिन्वुदं करेमि ? अधवा सुदं मए सडन्तलं समस्सन्तीए देवजणणीए मुहादो-'जण्णभाअसमुस्सुआओ देवाओ ज्जेव तह अणुचिहिस्सन्ति जह सो भट्टा भइरेण धम्मपदिणी तुमं अहिणन्दिस्सदि' त्ति / ता ण जुत्तं मे एत्थ विलम्बिएं, जाव इमिणा बुत्तन्तेण पिअसहीं सउन्तलं समास्सासेमि / (-इयुद्धान्तकेन निष्क्रान्ता)। [किमिदानीमेव निवृतं करोमि ? / अथवा श्रुतं मया शकुन्तला समाश्वासयन्त्या देवजनन्या मुखात्-'यज्ञभागसमुत्सुका देवा एव तथाऽनुष्ठास्यन्ति-यथा स भर्त्ताऽचिरेण धर्मपत्नी त्वामभिनन्दिष्यति-' मरुप्रदेशे सहसैव लुप्तप्रवाहं-भवति / सरस्वती नदी हि कुरुक्षेत्रादिदेशेषु प्रवहति, बहावलपुर, खैरपुर-आदि म्लेच्छदेशेषु च क्वचिदन्तर्हिता च भवतीति प्रसिद्धम् / [ उपमा // 29 // - मोहं = मूर्छाम् / निर्वृतं = शकुन्तलावृत्तान्तनिवेदनेन सुखितं / देवजननी = कश्यपपत्नी, देवमाता-अदितिः।। __यज्ञभागे समुत्सुकाः = यज्ञभागाऽभिलाषिणः / सपत्नीकस्यैव यज्ञेऽधिकारात् / यद्वा विरहातुरो राजा यज्ञादिदेवकृत्यं यथावन्नानुतिष्ठतीति पुनस्तस्मिन् प्रकृतिस्थे सति यज्ञादयः पूर्ववत्प्रवत्तरन्निति प्रकृतिस्थं राजानं कः समुत्सुका देवाः / त्वां = शकुन्तलाम् / अभिनन्दिष्यति = स्वीकरिष्यति / आनन्दयिष्यति / अनेन = राजाऽनुरागादिसूचकेन / उद्धान्तकम् = उत्प्लुतिभेदः [चक्कर काट कर ऊपर को चढ़ना, 'उछलकर' 'कूदकर' 'झपटकर'] / 'पूर्व दक्षिणमुत्थाप्य पादं सङ्कोचयेत्ततः / ___ चतुरिका-(घबड़ा कर--- ) महाराज ! धैर्य धारण करिए / ( होश में आइए)। सानुमती-क्या इस राजा को शकुन्तला की खबर देकर अभी प्रसन्न कर दूँ ? / अथवा-मैंने शकुन्तला को धीरज देती हुई देवताओं की माता अदिति को, अपने मुख से शकुन्तला के प्रति यह कहते सुना है, कि-'यज्ञ. भाग के लिए उत्सुक हुए देवतागण शीघ्र ही ऐसा उपाय करेंगे, जिससे तेरा पति तेरे को पुनः पाकर तेरा सत्कार करेगा, और तुझे पाकर प्रसन्न होगा।
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy