SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 391 सानुमती-( राजानं विलोक्य- ) ठाणे क्षु पञ्चादेसविमाणिदावि इमस्स किदे सउन्तला किलिस्सदि / [स्थाने खलु प्रत्यादेशविमानिताऽप्यस्य कृते शकुन्तला क्लिश्यति / रालस्य महामणेरिव (-सूर्यस्येव वा-) कृशाङ्गयष्टे राज्ञोऽस्य वपुषः कार्य हि तेजोमण्डलाच्छादितं सत् सहसा न केनापि लक्ष्यत इति भावः / [अत्र-चिन्तेति-सङ्कल्पः। जागरणान्निद्राच्छेदः / कृशता / प्रत्यादिष्टेतिविषयनिवृत्तिरिति-नानाविधाः कामदशा अपि सूचिताः। अनेन माधुर्य नाम नायकगुणोऽपि दर्शितः। 'तन्माधुयं यत्र गात्रदृष्टयादेः स्पृहणीयता / सर्वावस्थासु सर्वत्रे'ति सुधाकरायुक्तः / प्रवासविप्रलम्भे अपि दश कामदशाः / तदुक्तम् 'अङ्गेष्वसौष्ठवं चैव, पाण्डुता, कृशताऽरुचिः / अधृतिः, स्यादनालम्बस्तन्मयो-न्माद-मूच्छ नाः / मृतिश्चेति क्रमाज्ज्ञेया दश स्मरदशा इह // ' इति / तन्मतेऽङ्गाऽसौष्ठवं-'प्रत्यादिष्टे'त्यनेन / 'क्षीण' इति कृशता / 'रम्यं द्वेष्टी'त्यादिनाऽरुचिः। गोत्रस्खलनादिना-तन्मयीभावः / 'दाक्षिण्येने'ति-अधृतिश्च दर्शितति ध्येयम् / उपमा / स्वभावोक्तिः। परिकरः। अनुपासाः। शार्दूलविक्रीडितं वृत्तम् ] // 6 // ___ प्रत्यादेशेन विमानिता-प्रत्यादेशविमानिता = अस्वीकाराऽपमानिताऽपि / अस्य कृते = अस्य राज्ञो दुष्यन्तस्य कृते / एतदथै। शकुन्तला-क्लिश्यति = होते हैं / अर्थात् प्रकाशमान बढ़िया हीरे को पालिस व पहल के लिए काट कर छोटा कर देने पर भी, उसके तेज में कमी नहीं आती है, और वह और भी देदीप्यमान हो जाता है. वैसे ही शकुन्तला के विरह से, तथा शोक और उद्वेग आदि से ये महाराज कृश और दुर्बल अवश्य हो गए हैं, परन्तु इनका तेज और प्रभाव एवं सुन्दरता इतनी बढ़ी चढ़ी है कि ये दुर्बल होने पर भी, सुन्दर और दर्शनीय ही मालूम पड़ रहे हैं, और इनकी कृशता (दुर्बलता) सहसा ( जल्दी ) दृष्टिगोचर ही नहीं होती है // 6 // सानुमती-( राजा के सौन्दर्य और विरह को देखकर-) इनके द्वारा प्रत्याख्यान ( त्याग ) कर देने पर भी इनकी चिन्ता में जो शकुन्तला अब भी 1 'क्लाम्यति' पा०।
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy