SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् राजा-भवतु, तामेव द्रक्ष्यामि, सा खलु विदितभक्तिर्मा महर्षये निवेदयिष्यति। वैखानसः-साधयामम्तावत् / ( इति सशिम्यो निष्क्रान्तः ) / राजा-सूत ! नोदयाऽश्वान्. पुण्याश्रमदर्शनेनात्मानं पुनीमहे / सूतः-यहाज्ञापयत्यायुष्मान् / ( इति भूयो रथवेगं निरूपैयति ) / राजा-( समन्तादवलोक्य-) सूत ! अकथितोऽपि ज्ञायत एवाऽयमाभोगस्तपोवनस्य। [ 'काव्यार्थस्य समुत्पत्तिरुपक्षेप इति स्मृत' इति नाट्यशास्त्रोक्तरुपक्षेपनामकं प्रथम मुखसन्धेरङ्गं च प्रयुक्तं वेदितव्यम् ] | ___ भवतु = अस्त्वेवम्, तामेव = शकुन्तलामेव, द्रक्ष्यामि = प्रेक्षिष्ये / विदितं भक्तिर्यया सा विदितभक्तिः = ज्ञातभक्तिः, महर्षये = कण्वाय, निवेदयिष्यति = कथयिध्यति / विदितमिति सामान्ये नपुंसकम् / स्त्रीत्वे हि प्रियादित्वात्पुंवद्भावो न स्यात् ] / साधयामः = गच्छामः / 'प्रायेण ण्यन्तकः साधिर्गमेः स्थाने प्रयुज्यते' इति साहित्यदर्पणम् / निष्क्रान्तः = रङ्गान्निःसृतः / नोदय = प्रेरय / पुण्यश्चासावाश्रमश्च, तस्य दर्शनं, तेन-पुण्याश्रमदर्शनेन = पुण्यप्रदपवित्रतमाश्रमप्रेक्षणेन, पुनीमहे = पवित्रमाचरामः / शकुन्तला को अतिथि सत्कार का भार देकर, अपनी इस कन्या शकुन्तला के प्रतिकूल अदृष्ट (विवाह तथा पतिसुख में विन्न करने वाले ग्रहों) की शान्ति के लिए सोमतीर्थ गए हैं। (सोमतीर्थ-कुरुक्षेत्रान्तर्गत 'जींद'राज्य का 'पाण्डुपिण्डारा नाम का महान् सोमतीर्थ। या ढोसीपर्वत (नारनौल-पटियाला) स्थित चन्द्रतीर्थ)। राजा-अच्छा तो मैं फिर मुनि की कन्या शकुन्तला के ही दर्शन करनेजाता हूँ। वही मुनि के प्रति मेरा भक्ति और श्रद्धा की सूचना मुनि के आने पर उन्हें दे देगी। वैखानस-अच्छा तो हम लोग तो जाते हैं / (शिष्यों के साथ जाता है)। राजा - सूत ! घोड़ों को हाँको, चलो, इस आश्रम में जाकर मुनियों के पुण्यतम आश्रम आदि के दर्शन से अपने को पवित्र करें। सूत-जो आज्ञा महाराज की / ( पुनः रथ को तेजी से हाँकता है)। राजा-(चारों ओर देखकर ) सूत ! विना कहे हुए भी स्पष्ट ही मालूम 1 विदितभक्तिं मां महर्षेः करिष्यति' / 'कथयिष्यति' / 2 'तूर्ण चोदयाश्वान्' / 3 'रूपयति' पा० /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy