________________ ऽङ्कः] . अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 349 तदेषा भवतः पत्नी, त्यज वैनां, गृहाण वा / उपयन्तुर्हि दारेषु प्रभुता सर्वतोमुखी // 29 // -गौतमि ! गच्छाऽग्रतः। (-इति सर्वे प्रस्थिताः ) / शकुन्तला-अहं दाणिं इमिणा किदवेण विप्पलद्धा। तुह्म वि में कधं परिच्चअध ! (-इत्यनुप्रस्थिता)। [अहमिदानीमनेन कितवेन विपलब्धा / यूयमपि मां कथं परित्यजथ ! (-इत्यनुप्रस्थिता)। तदेषेति / तत् = तस्मात् / प्रसङ्गं सम्प्रति वयमेव उपसंहराम इत्यर्थः / एषा = शकुन्तला / भवतः = तव / पत्नी = स्त्री / एनां त्यज = परित्यज / गृहाण वा = स्वीकुरु वा / हि = यतः / दारेषु = आत्मकलत्रे / स्वभार्याविषये। स्वामिनः= पत्युः / प्रभुता = स्वाम्यं / स्वातन्त्र्यम् / सर्वतोमुखी = सर्वविधा / त्यागस्वीकारादिरूपा प्रभुता तस्य तत्र युज्यत एवेत्यर्थः / [ अर्थान्तरन्यासः // 29 // अनेन कितवेन = धूर्तेन दुष्यन्तेन / विप्रलब्धा = वञ्चिताऽस्मि / यूयमपि कथं मां परित्यजथेति योजना / अनुपस्थिता= शाङ्गरवादिकमनु यातुं प्रवृत्ता / और आपकी पत्नी को आपके पास पहुंचा दिया। अब हम तो आश्रम को जाते हैं। आप जानिए और यह आपकी पत्नी जाने। हम तो अब निश्चिन्त हैं / और यह आपकी स्त्री है, इसे चाहे छोड़ो, चाहे ग्रहण करो। क्योंकि विवाह करने वाले का अपनी स्त्री पर सब प्रकार का पूरा 2 अधिकार होता है // 29 // हे गौतमि ! आगे 2 चलो / [ सब-जाते हैं ] / शकुन्तला-मैं इस छलिया ठग से तो अब ठगी ही गई हूँ। इसने तो मुझे छोड़ ही दिया है। पर आप लोग भी मुझे इस प्रकार छोड़कर कैसे जा रहे हैं / ( यह कहकर शकुन्तला भी उनके पीछे 2 जाती है)। 1 'कान्ता' पा० 2 ('कथं) परित्यजथ' पा०।