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________________ 342 . अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [पञ्चमो 'अपि च-सन्दिग्धबुद्धिं मामधिकृत्याऽकैतव इवाऽस्याः कोपः सम्भाव्यते / तथा ह्यनयामय्येवमस्मरणदारुणचित्तवृत्ती, ___ वृत्तं रहःप्रणयमप्रतिपद्यमाने। भ्रुवौ =भ्रूकुटी / युगपदेव = एककालमेव / सहसैव वा / भेदं = भङ्गं / वक्रताम् / गते = प्राप्त / कुटिलतां गते / ___ यश्च जनः कृत्रिमेण क्रोधेन व्यवहरति, तस्यहि लोचनं तिर्यग वलति / वचो गद्दं च भवति / अधरश्च किञ्चिदेव कम्पते / भ्रकुटिश्च नात्यन्त वक्रा भवति / अर्थात् मिथ्याऽभिनीय प्रदर्श्यमानः क्रोधो न यथावद्विजम्भते / अस्यास्तु वनवासनिर्भयवृत्तस्तपस्विन्याः क्रोधो तिरर्गल :इव प्रकामं समुल्लमतीत्याशयः / राजानं मामाक्रोशन्त्या अप्यस्या न मनाक् सम्भ्रमलेश इति गूढोऽर्थः / [ उत्प्रेक्षोपमे / स्वभावोक्तिरनुप्रासश्च / पृथ्वी वृत्तम् ] / / 24 // अपि च = किञ्च / सन्दिग्धा बुद्धिर्यस्य तं-सन्दिग्धबुद्धि = संशयाकुलमति / माम्-अधिकृत्य = मां विषयीकृत्य / अकैतवः = अकृत्रिमएव / सत्यएव / अस्याः कोपः-सम्भाव्यते = उप्रेक्ष्यते / तया ह्यनयेति / अग्रिमेण श्लोकेनाऽयं सम्बध्यते / मय्येवमिति / एवम् = इत्थम् / अस्मरणेन दारुणा चित्तवृत्तिर्यस्य तस्मिन अस्मरणदारुणचित्तवृत्तौ = विवाहवा विस्मरणदारुणमनसि / अत एवभौंहें भी एक साथ चढ़ गई हैं / जिसका बनावटी व झूठा क्रोध होता है वह इधर-उधर, अगल बगल में ही देखता है, वह सामने नहीं देख सकता है, और नेत्र भी उसके लाल नहीं होते हैं, वाणी भी उसकी कठोर नहीं होती है, ओठ भी अधिक नहीं कम्पित होते हैं, भौंहे भी उसकी ज्यादा नहीं तनती हैं। परन्तु इसका क्रोध तो बनावटी व भय से दबा हुआ नहीं हैं, किन्तु सच्चा और बेपर्वाह क्रोध है / अर्थात् इसको मेरा कुछ भी भय नहीं है, और इसके क्रोध की मात्रा भी पूरी 2 बढ़ी हुई है // 24 // और भी-सन्दिग्ध बुदि मेरे प्रति इसका कोप अत्यन्त निर्भय बे लाग और सच्चा ही मालूम होता है / जैसे मुझे अपने विवाह की बात याद नहीं आने से, इस प्रकार मेरे कठोर चित्त 1 'सन्टिंग्धबुद्धि मां कुर्वन्' पा०।। 2 'मय्येव विस्मरण' पा० / 3 'एवमस्मरणे'त्यादि एकं पदं वा /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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