________________ S:] 18 अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 273 शकुन्तला---वच्छ ! कि मं सहवासपरिच्चाइणी अणुबन्धेसि ? / णं अचिरप्पसूदोवरदाए जणणीए विगा जधा मए वड्ढिदो सि तथा दाणिफि मए विरहिदं तादो तुमं चिन्तइस्सदि / ता णिउत्तस्स / (-इति रुदती प्रस्थिता)। [वत्स ! किं मां सहवासपरित्यागिनीमनुबध्नासि ? / ननु अचिरप्रसूतोपरतया जनन्या विना यथा मया वर्द्धितोऽसि, तथा इदानीमपि मया विरहितं तातस्त्वां चिन्तयिष्यति / तन्निवर्तव]। पालितः। कृतकश्चासौ पुत्रश्च-पुत्रकृतकः = पुत्रस्थानीयः / सोऽयं मृगः= . हरिणशिशुः / ते तव / पदवीं = पन्थानम् / न जहाति =न परित्यजति / [स्वभावोक्तिः, अनुप्रासः / 'वसन्ततिलकं वृत्तम् // 16 // सहवासपरित्यागिनीं = तव, आश्रमवासिनां च सहवासं विहाय गच्छन्तीम् / अनुबध्नासि = अनुसरसि / वृथैव किं स्नेहबन्धमनुबध्नामि / अचिरं प्रसूतया च तया उपरतया च-अचिरप्रसूतोपरतया =अचिरप्रसूतयैव मृतया। जनन्या = स्वमात्रा / मया = मातृकल्पया मया / चिन्तयिष्यति = पर्यवेक्षिष्यते / निवर्तस्व = आश्रमपदं याहि / रुदितेन = गेदनेन / अलं = न प्रयोजनम् / स्थिरा = धैर्यजिसका तूंने आजतक पालन किया है, वह बच्चे की तरह तेरा पाला हुआ यह हरिण का बच्चा, तेरे मार्ग को नहीं छोड़ रहा है, ( तेरे साथ 2 ही चल रहा है), और तेरे पैरों में वही बार 2 लोट रहा है ( लपट रहा है ) // 16 // : शकुन्तला-हे वत्स ! तुम लोगों के सहवास के सुख को छोड़कर जाने वाली के (मेरे) साथ तूं इस प्रकार प्रेम क्यों प्रदर्शित कर रहा है ? / मेरे साथ क्यों आ रहा है ? / जैसे तुझे जन्म देकर ही तेरी माता के तुरन्त मर जाने पर, तेरी माता के अभाव में मैंने तेरा माता की तरह आज तक पालन-पोषण किया है और. तुझे इतना बड़ा किया है, उसी प्रकार मेरे अभाव में भी तेरा पालन-पोषण तात कण्व करते रहेंगे। और तेरी देख-रेख अच्छी तरह करते रहेंगे / अतः अब तूं लौट जा / मेरे साथ मत आ। (इस प्रकार रोती हुई शकुन्तला प्रस्थान करती है)। 1 'अनुसरसि' पा०।