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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 239 तेजोद्वयस्य युगपद्व्यसनोदयाभ्यां लोको नियम्यत इवैष दशान्तरेषु // 2 // 'अपि चअन्तहिते शशिनि सैव कुमुद्वतीयं दृष्टिं न नन्दयति संस्मरणीयशोभा / एकस्यां दिशि / पश्चिमदिग्भागे / अस्तशिखरं याति = अस्तङ्गच्छति / एकतः = पूर्वस्यां दिशि च / अरुणः पुरस्सरो यस्यासौ-अरुणसारथिः / अर्कः = सूर्यः / आविष्कृतः = उद्गच्छति / आदिकर्मणि क्तः। एवं-तेजोद्वयस्य = चन्द्रस्य, सूर्यस्य च / युगपत् = एककालमेव / व्यसनेन = व्यसनप्रात्प्या। अस्तङ्गमनेन / उदयेन च = वृध्या, आविर्भावेण च / एष लोकः = सुखदुःखवान् जनोऽयं / दशान्तरेषु नियम्यते इव = 'सुखदुःखयोरनियतत्वात्तयोः प्राप्ती हर्षशोकावनुचिता'विति शिक्ष्यत इव / 'आत्मदशान्त रेष्वि'त्यपि पाठान्तरम् / __ [ अत्र सजनदुर्जन-व्यवहारारोपात्समासोक्तिः। द्वयोरपि प्राकरणिकयोरेकक्रियान्वयोगिता च / यथासङ्घयम् / उत्प्रेक्षा / दृष्टान्तोनाम नाट्यलक्षणम् / 'दृष्टान्तो यस्तु पक्षार्थसाधनाय निदर्शन मिति दर्पणोक्तेः। 'वसन्ततिलका वृत्तम् // 2 // ___ अन्तर्हित इति / शशिनि = इन्दौ / अन्तर्हिते = अस्तं याते सति / संस्मरणीया शोभा यस्याः सा-संस्मरणीयशोभा = स्मरणीयशोभातिशयसौभाग्या / (सूर्य) अब उगना ही चाहते हैं / इस प्रकार एक साथ दो तेजो मण्डलों के ( सूर्य-चन्द्रमा के ) उत्थान-अभ्युदय और विपन्न ( अस्त) होने से, इस संसार की भी नाना प्रकार की दशा की सूचना प्राप्त हो रही है / अर्थात्एक ओर जब चन्द्रमा का पतन हो रहा है, तो उसी समय दूसरी ओर सूर्य का उदय भी हो रहा है। इसी प्रकार इस संसार में भी एक का अधःपतन होता है, एक रोता है, तो उसी समय दूसरे का अभ्युदय भी होता है, वह हँसता है / यही संसार की दशा है। इसकी सूचना सूर्य-चन्द्रमा की इस दशा से ही प्राप्त हो रही है // 2 // - और भी-भगवान चन्द्रमा के अन्तर्हित होते ही (छिपते ही) यह वही कुमुदिनी ('कोई' नामक फूलों की लता ) है-जो चन्द्रमा के रहते इतनी * सुन्दर व हृदय को आनन्द देती थी, अब इसकी वह शोभा केवल याद करने
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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