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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 237 अनसूया--हला ! दोण्णं ज्जेव णो हिअए एसो बुत्तन्तो चिट्ठदु / रक्खीणीआ क्खु पइदिपेलवा पिअसही / [हला ! द्वयोरेवाऽऽवयोहृदये एष वृत्तान्तस्तिष्ठतु / रक्षणीया खलु प्रकृतिपेलवा प्रियसखी]। प्रियंवदा--को दाव उण्णोदएण णोमालिअं सिञ्चदि ? / (-इत्युभे निष्क्रान्ते)। [.कस्तावदुष्णोदकेन नवमालिकां सिञ्चति (-इत्युभे निष्क्रान्ते )] / . विष्कम्भकः। न विभावयति = न जानाति / आगन्तुकम् = अतिथिम् / नौ = आवयोः / हृदये = मनसि एव / एष वृत्तान्तः = शापरूपः / रक्षणीया = अप्रियश्रवणदुःखात्परिहरणीया / प्रकृतिपेलवा = प्रकृतिसुकुमारा / शकुन्तलां प्रति शापाऽकथनादभूताहरणं विमर्शसन्ध्यङ्गमू / तदुक्तं-तत्र व्याजाश्रयं वाक्यमभूनाहरणं मत'मिति / उष्णोदकेन = तसेन पयसा / नवमालिकां = सप्तलां / एतेन तां प्रति शापकथनमत्यन्तमनुचितमिति भाव आविष्कृतः / __ अनसया-हे सखी प्रियंवदे! यह दुर्वासा के शाप की बात मेरे और तेरे मन में ही रहनी चाहिए। क्योंकि - स्वभाव से ही कोमल स्वभाव वाली इस शकुन्तला की रक्षा भी तो हमें करनी है / अर्थात्-इस शापवाली बात को यदि शकुन्तला सुनेगी, तो और भी व्याकुल और दुःखित होगी, अतः यह बात इससे नहीं कहनी चाहिए। यह बात तो हमारे दोनों के मन में ही गुप्त रहनी चाहिए। - प्रियंवदा-ठीक है, भला ऐसा कौन होगा जो नवमालिका (नेवारी) के कोमल पौधे को गर्म जल से सीचेगा ? / अर्थात्-इस बात को शकुन्तला को सुनाना, और नवमालिका के अत्यन्त कोमल व सुकुमार पौधे में गर्म जल देना दोनों बराबर है। [ नवमालिका = नेवारी अत्यन्त कोमल होती है, उसके पौधे को गर्म जल से सींचने से वह तत्काल मुझी जाता है। इसी प्रकार शकुन्तला भी शापकी बातको सुनते ही व्याकुल हो जाएगी और कदाचित् प्राण छोड़ देगी] / (दोनों जाती हैं)।
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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