________________ 220 : अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [तृतीयो गौतमी-(शान्त्युदकेन शकुन्तलामभ्युक्ष्य-) जादे ! णिराबाधा मे चिरंजीव / अवि लहुसन्दावाई अङ्गाई ? / (-इति स्पृशति)। [(शान्त्युदकेन शकुन्तलामभ्युक्ष्य-) जाते ! निराबाधा मे चिरंजीव / अपि लघुसन्तापानि अङ्गानि ? (-इति स्पृशति ) / . शकुन्तला--अम्मो ! अस्थि विसेसो / [अम्मो ! अस्ति विशेषः]। गौतमी-परिणदो दिअसो, ता एहि उडअंज्जेव गच्छा / [परिणतो दिवसः, तदेहि उजटमेव गच्छावः] / शकुन्तला—(कथंचिदुत्थाय, स्वगतम्-) हिअअ ! पढमं सुहोवणदे मणोहरे कालहरणं करेसि, सम्पदं अणुभव दाव दुक्खं। ( पदान्तरे प्रतिनिवृत्त्य, प्रकाशम्-) लदाघर ! सन्दावहर ! आमन्तेमि तुम पुणेवि परिभोअत्थं / (-इति निष्क्रान्ते)। [कथं चिदुत्थाय, स्वगतं- ) हृदय ! प्रथमं सुखोपनते मनोरथे कालअवतीर्ण = स्नातुं गते / अभ्युक्ष्य = अभिषिच्य / निराबाधा = अपगतव्यथा / लघुः सन्तापो येषान्तानि-लघुभन्तापानि = शान्तव्यथानि / स्पृशति = हस्तेन परामृशति / अम्मो ! इति हर्षे, (अम्मो = हम्ब, अर्थात् हाँ इति स्वीकारे देशी)। विशेषः = पूर्वतो लाघवं / परिणतः = अस्तमितः / उटज = पर्णशालां / सुखेन उपनते-सुखोपनते = अनायासलब्धे / मनोरथे -- अभिलाषभूते प्रियतमे / गौतमी-[शान्तिजल से शकुन्तला का अभिषेक (जल से छींटे दे) करके-1 हे पुत्रि ! तूं रोग-सन्ताप से मुक्त हो, बहुत समय तक जीवित रह / (हाथ फेरती हुई ) बेटी ! अब तो तेरा सन्ताप कुछ कम है न ? / शकुन्तला - हाँ, अब कुछ तो फर्क पड़ा है / ( अम्मो - हम्ब, हाँ)। गौतमी-हे पुत्रि ! अब दिन छिप रहा है, अतः चल, कुटी पर ही चले। शकुन्तला-(किसी तरह अनिच्छापूर्वक उठकर, मन ही मन ) हे हृदय! पहिले तो तूं सुखपूर्वक (अनायास ही) प्राप्त हुए अपने मनोरथ प्राणप्यारे-को पाकर भी वृथा ही कालयापन कर रहा था। बातों ही बातों में समय खोकर