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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 213 शकुन्तला–ण दाव णं पेक्खामि, पवणकस्पिदकण्णुप्पलरेणुणा कलुसीकिदा मे दिट्ठी। [न तावदेनत्प्रेक्षे, पवनकम्पितकर्णोत्पलरेणुना कलुषीकृता मे दृष्टिः] / राजा-( सस्मितम्-) यद्यनुमन्यसे, तदहमेनां वदनमारुतेन विशदां करोमि (करवाणि ) / शकुन्तला-तदो अणुकम्पिदा भवेअं, किन्तु उण अहं ण दे वीससेमि / [तदाऽनुकम्पिता भवेयम् / किन्तु पुनरहं न ते विश्वसिमि]। राजा-मा मैवम्, नवो हि परिजनः सेव्यानामादेशात् परं न वर्त्तते। एनत् = नवचन्द्रतुल्यं मृणालवलयं / न प्रेक्षे = नैव द्रष्टुं शक्नोमि / पवनेन कम्पितं यत् कर्णोत्पलं, तस्य रेणुना = वातान्दोलितकर्णपूरोपरागेण / कलुषीकृता= आविला / एनां = दृष्टिं / वदनमारुतेन = मुखवातेन / विशदां = प्रसन्नाम् / अनुकम्पिता= अनुगृहीता। न विश्वसिमि = न ते विश्वासः। एतब्याजेन कमप्यविनयं चुम्बनादिरूपं कर्म कदाचित्-भवान् विदध्यात् / मा मैवं = नैवमविश्वासो मयिविधेयः / नवः = सद्यो नियुक्तः। परिजनः = सेवकः / सेव्यानां = स्वामिनाम् / आदेशात् = आज्ञायाः। परम् = अधिकं / न वर्तते = नाचरति / अत्यादरः = शकुन्तला-मैं तो इस मृणालवलय को नहीं देख सक रही हूँ, क्योंकिमेरी आँख में पवन से कम्पित कान के भूषण कमल-की रेणु के गिर जाने से मेरी आँख कलुषित ( देख सकने में असमर्थ ) हो गई है। . राजा-(मुसुकुराते हुए ) यदि तुम स्वीकृति दो तो तुमारी आँख को अपने मुख से फूक मारकर मैं ठीक कर दूं। __ शकुन्तला-यदि आप ऐसा कर दें तब तो मैं अनुकम्पित ही हो जाऊँ। परन्तु में आपका विश्वास नहीं करती हूँ। कदाचित् आप कोई गड़बड़ (चु बन लेना आदि कार्य) कर बैठे तो? / राजा-ऐसा भय मत करो / क्योंकि-नया नौकर कभी मालिक की आज्ञा के बाहर नहीं जाता है। (और मैं अभी तुम्हारे लिए नया ही हूँ। अतः तुमारी स्वीकृति के बिना गड़बड़ नहीं करूँगा ) /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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