________________ 166 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [तृतीयोराजा-'किं वक्तव्यमेव ? / शशिकरविशदान्यस्यास्तथा हि दुःसहनिदाघशंसीनि। भिन्नानि श्यामिकया मृणालनिर्माणवलयानि // 11 // शकुन्तला-(पूर्वाङ्गेण शयनादुत्याय- ) हला ! भण जं वत्तुकामासि / [ ( पूर्वाङ्गेण शयनादुत्थाय-) हला ! भण, यद्वक्तकामाऽसि / अनसूया-हला सउन्तले ! अलब्भन्तरा अम्हे दे मणोगदस्स बुत्तन्तस्स। किन्तु जादिसी इदिहासकधाणुबन्धेर्मु कामिजणाणं अवस्था सुणीअदि तादिसी खल्वत्र प्रश्ने / वक्तव्यमेव ? = किमेतदपि वक्तव्यम् ? / ननु स्पष्टमेवैतदित्याशयः / शशीति / तथा हि = स्पष्टतामेव भणामि / अस्याः = शकुन्तलायाः। शशिनः करा इव विशदानि-शशिकरविशदानि = चन्द्रकिरणस्वच्छानि / दुःसहं निदाघ शंसन्ति तच्छीलानि-दुःसह निदाघशंसीनि = दुःसहसन्तापसूचकानि / मृणालैर्निर्माण येषान्तानि वलयानि-मृणालनिर्माणवल्यानि = बिसनिर्मित करकङ्कणानि / श्यामि कया = कृष्णरेखया, भिन्नानि = संसक्तानि / एवञ्च स्पष्टोऽस्या अङ्गसन्ताप इति भावः / [वाक्यार्थहेतुकं काव्यलिङ्गम् ] // 11 // पूर्वाङ्गेण = नाभ्यू भागेन / 'पूर्वार्द्धने'त्यपि पाठः / भण = वद / यद् वत्तकामा = यद् वक्तुमिच्छसि / न लब्धमन्तरं याभिस्ताः अलब्धान्तराः = रहस्यानभिज्ञाः। राजा-क्या इसमें भी कुछ कहना बाकी है। यह तो स्पष्ट है / क्योंकि, देखो चन्द्रमा की किरणों की तरह श्वेत और स्वच्छ, मृणालों ( कमल के तन्तुओं ) के बने हुए इसके वलय ( कङ्कन, बाजूबन्द, चुड़ी, कड़े आदि ) दु:सह विरह सन्ताप से काले पड़ गये हैं, मुरझा गए हैं। इससे ही स्पष्ट सूचित होता है, कि-यह अत्यन्त सन्ताप ( दाह, काम ज्वर ) से पीड़ित है / अतः यह तो पूछना व्यर्थ ही है // 11 // शकुन्तला-(तविये के सहारे छाती और गर्दन को थोड़ी ऊँची करके ) हे सखि ! तुम्हें जो कुछ कहना हो. कहो, जो कुछ पूछना हो सो पूछो। . अनसूया-सखि शकुन्तले ! हम लोग तेरे हृदय की बात को तो जानती 1. क्वचिन्न / 2. 'पूर्वार्द्धन' पा० / 3. अनब्भन्तरा क्खु अम्हे मदनगदस्स तिरस' ( अनभ्यन्तरे खल्वावा मदनगतस्य वृत्तान्तस्य ) पा० / .