________________ s:] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 139 राजा-किमाज्ञापयन्ति ? / उभौ-तत्र भवतः कण्वस्य कुलपतेरसांनिध्याद्रक्षांसि न इष्टिविनमुत्पादयन्ति, तत्कतिपयदिवसमात्रं सारथिद्वितीयेन भवता सनाथीक्रियतामाश्रम इति / राजा-अनुगृहीतोऽस्मि / विदूषका-(अपवार्म्य ) एस दाणिं भअदो अणुऊलो गलहत्थो / [(अपवार्य ) एष इदानीं भवतोऽनुकूलो गलहस्तः] / अभ्यर्थयन्ते = प्रार्थयन्ते / असान्निध्याद् = अनुपस्थित्या / इष्टिविघ्नम् = यज्ञविघ्नम् / तत् = तस्मात् / कतिपये दिवसा एव–कतिपयदिवसमात्रं = कियन्त्यपि दिनानि। सारयिरेव द्वितीयः-सहायो यस्यासौ तेन = सारथिसहायेन। सनाथीक्रियताम् = परिपाल्यताम् / राजपरिजनसम्बन्धे हि तपोवनोपरोधसम्भवात्सारथिद्वितीयेनेत्युक्तम् / अपवार्य = परावृत्य / तल्लक्षणमुक्त विश्वनाथेन,-'भवेत्तदपवारितं,-रहस्यं तु यदन्यस्य परावृत्य प्रकाश्यते' - इति / अनुकूलः = अभीष्टः / गलहस्तः = अर्धचन्द्र इव / आयाससाध्यस्याऽप्यस्याश्रमनिवासस्य भवतोऽभिमतसाधकतयाऽनुकूल. राजा-कहिए, पूज्य तपस्वियों की क्या आज्ञा है ? / दोनों ऋषिकुमार-यहाँ के कुलपति ( आश्रम के अधिष्ठाता ) पूज्यपाद भगवान् कण्व के किसी कारणवश बाहर चले जाने के कारण, राक्षस लोग हमारी दृष्टि ( यज्ञ ) में विघ्न कर रहे हैं / अतः यज्ञ की रक्षार्थ थोड़े दिनों के लिए आप सारथि के साथ एकाकी यहाँ ही निवास करें। इस आश्रम की रक्षा करें अ र इस आश्रम को सनाथ करें / अर्थात् इस आश्रम की शोभा को बढ़ावें / राजा-मैं इस प्रकार सेवा की आज्ञा से कृतार्थ हो गया। अर्थात् मेरा अहो भाग्य है-जो ऋषियों ने मुझे इस कार्य के करने की आज्ञा प्रदान की है। विदूषक- अलग से) यह तो आप की इच्छा के अनुकूल ही गलहस्त = कार्य, परिश्रम (गर्दनियाँ, धक्का-देना, अर्थात् बलात् पकड़कर काम में लगाना) है।