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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 111 राजा-विश्रान्तेन भवता ममाऽन्यस्मिन्ननायासे कर्मणि सहायेन भवितव्यम् / विदषकः-किं मोदअखजिआए ? / [किं मोदकखादिकायाम् ? ] / राजा--यद्वक्ष्यामि। विदूषकः—गहीदो क्खणो। [गृहीतः क्षणः]। राजा-कः कोऽत्र भोः ! / दौवारिक:- ( प्रविश्य-) आणवेदु भट्टा / / [ ( प्रविश्य ) आज्ञापयतु भर्ता]। . अवशेषमपरित्यज्य-सावशेषं सम्पूर्ण / साकल्येऽव्ययीभावः / अनायासे = परिश्रमशून्ये / अन्यस्मिन् = मृगयाभिन्ने कार्यान्तरे / ___ मोदकानां खादन-मोदकखादिका तस्यां = लड्डुकभक्षणमहोत्सवे / यद्. क्ष्यामि = यत्कार्ये कथयामि, तत्र, न, तु मोदकभक्षणे / गृहीतः क्षणः = दत्तोऽवसरः / क्षणः = अवसरः / सावधानोऽहं कथयेति यावत् / ___ अत्र = द्वारदेशे। रेवत्यां जातो रैवतः, स एव रैवतक इति द्वारपाल राजा-अच्छा, आप इस प्रकार विश्रान्ति प्राप्तकर बिना परिश्रम के ही हो सकने वाले मेरे एक कार्य में सहायक होइए। विदूषक-क्या लड्डू खाने में ? / तो मैं तैयार हूँ। राजा-नहीं 2, जो मैं कहता हूँ उसमें / विदूषक-अच्छा, तो मैं सुन रहा हूँ, कहिए / राजा-बाहर पहरे पर कौन है ? / / दौवारिक-(सिपाही )-क्या आज्ञा है महाराज !
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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