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________________ एकादशः सर्गः वधूप्रवेशे बहुशो बभूवुर्या लौकिकाचार विचारमालाः। हैमालये सोत्सवर्विकास्ताः सर्वा सुसंपन्नतया विरेजुः // 82 // अर्थ-हेमचन्द्रजी के गृह में जब वधू का प्रवेश हुआ तब लौकिक जितने भी आचार विचार उस समय होते थे-वे सब बड़े हो उत्सव के साथ अच्छी तरह संपन्न हुए // 82 // હેમચંદ્રને ઘેર જયારે કુલવધૂન પ્રવેશ થયે તે સમયે લૌકિક જે કંઈ આચાર વિચાર એ સમયે થતા હતા એ બધા ઘણું જ ઉત્સાહપૂર્વક સારી રીતે કરવામાં આવ્યા. ૮રા गंगा मनोमंदिरमिन्दिराया आगास्तुल्यं तु तदा बभूव / लब्धं यथेच्छं च वनीयकैस्तै स्तैरतो द्रव्यमनेकरूपम् // 83 // अर्थ-वह के आने पर तो गंगा का मन लक्ष्मी का भंडार जैसा हो गया था! क्यों कि अनेक प्रकार के याचकों ने इन से अपनी इच्छा के अनुसार मुंहमांगा द्रव्य प्राप्त किया था. // 83 // વહુના આવવાથી ગંગાનું મન લક્ષ્મીના ભંડાર જેવું બની ગયું. કેમકે ત્યાં અનેક પ્રકારના વાચકોએ તેમની પાસેથી પોતાની ઈચ્છા પ્રમાણે મેઢે માગ્યું ધન પ્રાપ્ત કર્યું હતું. 83 यथा यथाऽसौ स्वजन प्रकृत्या ज्ञात्री बभूवाय तथा तथा सा / तद्रूप नैन प्रकृति प्रवृत्त्या गृहेऽभवत्सर्वजनप्रिया सा // 4 // - अर्थ-जैसी जैसी यह अपने घर के मनुष्यों की प्रकृति से परिचित होती गई वैसी 2 यह उनके अनुकूल अपनी प्रवृत्ति करती गई. इस कारण यह घर में सब को प्रिय हो गई. // 84 // જેમ જેમ સુદર્શના પિતાના ઘરના માણસના સ્વભાવથી પરિચિત થતી ગઈ તેમ તેમ તેમને અનુકૂળ પોતાની પ્રવૃત્તિ કરતી તેથી તે ઘરમાં સૌને પ્રિય બની ગઈ. 84aa. धन्या सा जननी पिताऽपि सुकृती गेहं च तत्पावनम्, रम्या सा घटिकाति सुन्दरतरस्तद्वासरो वाऽनया। स्वोत्पत्त्या समलंकृतः कुरुविधे ! पुत्रप्रियां प्रेयसीम, ... नित्यं मद्धृदयैकहारलतिका सौख्यश्रिया शालिनीम् // 85 // अर्थ-वह माता धन्य है. यह पिता भी पुण्यशाली है. घर वह पवित्र है. वह घडी भी बहुत सुन्दर है और दिवस भी अत्यन्त श्रेष्ठ है कि जिसे
SR No.004486
Book TitleLonkashah Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1983
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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