________________ लोकाशाहचरिते 'आज्ञा न भर्द्धश्च विलोपनीयाऽऽराध्या सदा सा सुखवृद्धि हेतुः / सौभाग्यगर्यो न कदापि कार्यः विनम्रता शीलवषश्च सेव्यः // 71 // __ अर्थ-हे पुन्नि ! पति की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना, यदि सुख शांति की वृद्धि चाहती हो तो जो कुछ वे कहें उसे मानना. तथा अपने सौभाग्य पर अहंकार नहीं करना. // 71 // હે પુત્રી ! પતિની આજ્ઞાનું ઉલ્લંઘન ન કરવું. જો સુખ શાંતીની વૃદ્ધિ ઈચ્છતી હે તે જે કંઈ તેઓ કહે તે માનવું. તથા પોતાના ભાગ્ય પર અહંકાર કરે નહીં. 71 दास्यादि वर्गोऽथ च बोधनीयः सुस्नेहदृष्ट्या न च ताडनीयः चर्चाऽधिका वा बहुशः प्रलापा न तेन साधै खल्लु साधनीयः // 72 // अर्थ-घर पर जो नौकर चाकर हों उन्हें बडे अच्छे स्नेह के साथ समसाना उन्हें ताडना नहीं करना और न उनके साथ अधिक चर्चा या व्यर्थ का पकवाद ही करना. // 72 // ઘેર જ નોકર ચાકરે હોય તેમને ઘણા જ સ્નેહપૂર્વક સમજાવવા. તેમને મારવા નહીં. તેમજ તેઓની સાથે વધારે પડતી વાતચિત કે નકામે બંકવાદ કરે નહીં. /૭ર कुलकम्प्रकाशनीया न च गुप्तवार्ता गृहादिकार्ये यतना विधेया। न सेवकेभ्यो ह्यशनप्रदाने प्रमादभावोऽपि कदापि सेव्यः // 73 // ... कार्य यथाकाल मनेकमेकं त्वया विधेयं, वचनं च मिष्टम् / . भिक्षार्थिने द्वारि समागताय वक्तव्यमेवं गृहगोमिनी सा // 4 // नारी स्वधर्मोह्यभिवर्धनीयः दानेऽथ भावः खलु रक्षणीयः / ईर्षाल्लुवृत्तिः पखिर्जनीया व्ययों यथायं च समीक्ष्य कार्यः // 75 / / अर्थ-अपनी गुप्तवात बाहर प्रकट नहीं करना, घर के कामकाज में साथधानी रखना, सेवकों को भोजन देने में प्रमाद कभी नहीं करना, समय के अनुसार ही सब काम करना और द्वार पर आये हुए भिक्षुकों से मीठे वचन बोलना. इस तरह नारी घर की लक्ष्मी बन जाती है. अपने धर्म की प्रभवना बढाना, दान देने में भाव रग्वना. किसी के साथ ईर्षा नहीं रखना और जैसी भाय हो उसी के अनुसार देख भालकर खर्च करना // 73-74-75 / /