________________ दशमः सर्गः વાગ્યાનવિધિમાં આવેલા મનુષ્યનું સ્વાગત અને સત્કાર એ સમયને અનુસરીને યોગ્ય રીતે કરીને હિમકણ અને ચંદ્રમા જેવા શીતળ અને પ્રિય હેમચંદ્ર ઘણા જ વિશેષ રીતે પ્રસન્ન થયા. d૧૦જા पीतानि पुष्पाणि समागतैस्तैः सर्वैर्मित्वाच शुभाशिषाऽमा / . लोकोत्तमाङ्गे मुदितान्तरङ्गैनिक्षिप्य जग्मु भवनं स्वकीयम् // 105 // अर्थ-वाग्दान विधि में संमिलित हुए समस्त जनों ने मिलकर बडे ही हर्ष से अपने 2 शुभाशीर्वादों के साथ लोकचन्द्र के मस्तक पर पीले पुष्प प्रक्षिप्त किये और अपने 2 घर चले गये. // 105 // વાગ્યાન વિધીમાં આવેલા સઘળા જનસમૂહે મળીને ઘણા જ હર્ષ પૂર્વક અને શુભાશીર્વાદ સાથે લેકચંદ્રના મસ્તક પર પીલા પુષ્પો વેર્યા અને પિતાને ઘેર ગયા. /૧૦પા सौभाग्यालभ्यते लक्ष्मीः सौभाग्याच्चगुणावली / सौभाग्याल्लभ्यते रामा वामा सारङ्गालोचना // 106 // अर्थ-सौभाग्य से ही लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, सौभाग्य से ही अच्छे गुणों का लाभ होता है. और सौभाग्य से ही भृग के जैसी लोचन वाली सुन्दर स्त्री का लाभ होता है // 106 // સૌભાગ્યથી જ લક્ષ્મીની પ્રાપ્તિ થાય છે, સૌભાગ્યથી જ સારા ગુણોનો લાભ થાય છે. , સૌભાગ્યથી જ મૃગનયની સ્ત્રીને લાભ થાય છે. 106 एकतावदयं मदीयनिलयस्याधारभूतः सुत , मेऽयं सुन्दरमालयं युपत्नं विश्रान्ति भूश्चेतसः / क्रोडश्रीरुरसश्च शीतलमही निर्वाण भर्नेत्रयोः, जीयात्सद्गुरुभक्तितः प्रतिदिनं भूयाच धर्मोत्सवः // 107 अर्थ-एक यही सुत मेरे भवन का आधार भूत-शिला है. यही मेरा सुन्दर आलय-घर है., यही मेरा उपवन है, यही चित्त के विश्राम की भूमि है, यही मेरी गोदी की शोभा है, यही मेरी छाती को ठंडी करने वाली शीतल मही है, यही नेत्रों की निर्वाणभूमि हैं-नयनों को सर्वथा शान्ति देने वाली जगह है. अतः यह सद्गुरु की भक्ति से जयवन्त रहे और प्रतिदिन धर्म का है उत्सव जिसे ऐसा यह होवे. // 107 //