________________ दशमः सर्गः ___ अर्थ-किन प्राणियों का वैवाहिक जीवन यहां कलह शोक आदि से रहित हुआ है अर्थात् किसी का नहीं. तथापि विषयाभिलाषा वाले मूर्ख प्राणी उसी ओर दौडते हैं और तृप्ति को प्राप्त नहीं करते हैं // 92 // કયા પ્રાણિયેનું વૈવાહિક જીવન અહીં કલહ શેક વિગેરેથી રહિત થયેલ છે? અર્થાત કેઇનું જ નહીં. તો પણ વિધ્યાભિલાષાવાળા મૂર્ણ પ્રાણી એજ તરફડે છે, પરંતુ તેમને તૃપ્તિ મળતી નથી. ૧૯રા युग्मम्पिपासया व्याकुलिनों यथैणः मरीचिकां धावति नीरबुद्धया। तथापि नाप्नोति जलं स तत्र भ्रमभ्रमन्मृत्युमुपैति तदत् / / 93 // जीवोऽप्ययं सौख्यसमाप्तुकामः पंचेन्द्रियार्थेषु निमग्नबुद्धिः / सुखेच्च्या तानथ सेवते नो प्राप्नोति तदुःखमुपैति नूनम् // 94 // ___ अर्थ-जिस प्रकार प्यास आकुलित हुआ मृग जल की बुद्धि से मरीचिका की तरफ दौडता है पर वह वहां जल नहीं पाता है. केवल इधर उधर चक्कर काट 2 कर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, उसी प्रकार यह जीव भी सुख प्राप्त करने का अभिलाषी होकर पांचों इन्द्रियों के विषयों में अपने ज्ञान को निमग्न कर देता है-अर्थात् इन विषयों के सेवन से मुझे सुख प्राप्त होगा इस आशा से उनका सेवन करता है. परन्तु इसे वहां सुख नहीं मिलता है केवल दुःख ही मिलता है. // 93-94 // જેમ તરસથી પીડાયેલ મૃગ જલ સમજીને તડકા તરફ દોડે છે, પણ ત્યાં તેને જળ પળતું નથી કેવળ આમતેમ આંટાફેરા મારીને મરણને શરણ થાય છે. એ જ પ્રમાણે આ જીત પણ સુખ મેળવવાને ઇચ્છીને પાંચે ઈદ્રિયના વિષયમાં પોતાના જ્ઞાનને ડુબાડી દે છે અર્થાત આ વિષયેના સેવનથી મને સુખ મળે છે એવી આશાથી તેનું સેવન કરે છે, ५१तु त्यां सु५ मा नथी 11 // 5 // भणे छ. // 63-64 // शनैः शनैस्तद्विषयैर्वराकः प्रवंचितोऽसौ च गतस्थितिः स्यात् / श्वम्रादि भूमौच निपत्य भुङ्क्ते शीतोष्णजन्यां बहुवेदनां हा ! / 95 // , अर्थ-उन पंचेन्द्रियों के विषयों से ठगे गये इस जीव की जब भुज्यमान मायु धीरे 2 समाप्त हो जाती है तो यह नरकादि गतियों में उत्पन्न हो कर वहां शीत और उष्ण जन्य वेदना को भोगता है. // 95 / /