________________ 254 लोकाशाहचरिते - अर्थ-हे गोविन्द ! इस जीवन का जो उत्तम आनन्द है वह तुम पुण्योदय से प्राप्त हुए इस बालक के साथ जो कि सहज सरल स्वभाव वाला है प्राप्त करो. // 127 // હે ગોવિંદ ! આ જીવનને જે ઉત્તમ આનંદ છે, તે તું પુણ્યગથી પ્રાપ્ત થયેલ સહજ સરળ સ્વભાવવાળા આ બાળકની સાથે પ્રાપ્ત કર. ૧૨છા - - - - कृतार्थवित्तोऽस्युपयुक्तकृत्य ! - श्लाघ्योऽसि निष्कंटकजीवनोऽसि / / अग्रेसरः पुण्यवतां च पुत्रवतां त्वमेगऽस्यमुना सुतेन // 128 // अर्थ-हे गोविन्द ! तुम्हारा धन सफल है. तुमने यहकार्य अच्छा किया. तुम प्रशंसा के योग्य हो. तुम्हारा जीवन निष्कंटक बन गया है. तुम ही इस पुत्र के द्वारा पुण्यशालियों में और पुत्र वालों में अग्रेसर बन चुके हो. // 128 // गोवि! तभा पन सण छे.ते // स म यु तु यावासाय छ।. તારું જીવંત નિષ્ફટ બની ગયું છે, તું આ પુત્રથી પુણ્યવાનમાં અને પુત્રવાને માં अग्रेसर गनेस छ।. // 128 // ::: ::..... भद्रः प्रकृत्याऽसि सुभद्र ! भद्रा भद्राकृते ! ते भणिति भणामि / / शृणुष्व गोविन्द सुनन्दन ! त्वं भद्रं दिशेत्सा च मदुक्तिरेषा // 129 // अर्थ-हे सुभद्र ! तुम प्रकृति से श्रेष्ठ हो आकृती भी तुम्हारी सुहावनी है. मैं (तुम्हारे हित की दृष्टि से) एक अच्छी बात कहता हूं. हे गोविन्द के सुनन्दन ! तुम उसे सुनो. मेरे द्वारा कही गई यह बात तुम्हारे कल्याण के लिये होगी. // 129 // હે સુભદ્ર ! - સ્વભાવથી ઉત્તમ છે. તારે આકાર પણ શોભામણો છે. (તારા હિત માટે) એક સારી વાત કહું છું હે ગોવિંદના સુપુત્ર! તું તે સાંભળ. મેં કહેલ આ વાત 'તારા કલ્યાણની છે. 129 तातं कृतार्थ कुरु पुत्र ! भक्त्या कदापि कुत्रापि भवेन तस्मात् / विरुद्धवृत्तिस्त्वं, पितृभक्तः सुतः सुखी स्यात सततं समृद्धः // 130 // अर्थ-हे पुत्र ! तुम अपनी भक्ति से पिताजी को सदा कृतार्थ करते रहो किसी भी अवस्था में कहीं पर भी उनसे विरुद्धवृत्ति वाले नहीं बनना. क्योंकि पितृभक्त सुध सदा सुखी और समृद्धिशाली होता है / / 130 //