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________________ अष्टमः सर्गः मार्गे प्रयातस्य च वास्य कैश्चित् हिौ मिलित्वा पशुभिः कृतंचेत् / हा ! भक्षणं, तात ! गतस्त्वमित्थं दुरन्तमन्तं किमु जीवनेन 168 // अर्थ-अथवा-रास्ते में चलते हुए उनका मिलकर किन्हीं हिंसक जीवों ने भक्षण कर लिया हो, और इस तरह से हे तात ! तुम्हारी दुःख दायक मृत्यु हुई हो तो हम लोगों के जीवन से अब क्या ? // 68 // અથવા રસ્તામાં આવતાં તેમનું કઈ હિંસક છે મળીને તેમને ખાઈ ગયા હોય અને આ રીતે હે પિતાજી ! તમારું દુઃખદ મરણ થયું હોય તો અમારે જીવીને હવે શું કરવું ? 68 क्षुत्क्षाम कुक्षिः खलु तातपादः केनापि प्रदात्रा कशिपु मदानात् / आहारपूर्णोदवान कृतश्चेत्तेनार्जितं पुण्यमगण्य पण्यम् / / 69 / / अर्थ-पिताजी भूखे हैं / यदि किसी दाताने आहार देकर उनके उदर को भर दिया है-तो उसने संसार में अगण्य पण्य देने वाले पुण्य का संचय कर लिया है. // 69 // . પિતાજી ભૂખ્યા છે, જે કઈ દાતાએ ભેજન આપીને તેમનું ઉદર ભર્યું હોય તે તેમણે સંસારમાં અગણિત પુણ્ય આપનારા પુણ્યને સંચય કરી લીધો છે. છેલ્લા बुभुक्षिताः स्मो वयमद्य सर्व असाम कामं खलु चिन्तयाऽलम् / प्रत्यागतश्चेत्सुखसातयाऽसावुद्गादगारे मन हैमचन्द्रः // 70 // अर्थ-यद्यपि हम सब आज भूखे हैं सो भले ही रहे. इसको हमें चिन्ता नहीं है यदि पिता जी सुखशाता से घर पर वापिस आजाते हैं तो हम समझेंगे-कि घर में सुवर्ण का चन्द्रमा उदित हुआ है. // 70 // જેકે અમે સૌ આજે ભૂખ્યા છીએ તે ભલે રહ્યા તેની ચિંતા અમને નથી. જો પિતાજી સુખપૂર્વક ઘેર આવી જાય તો અમે માનીશું કે ઘરમાં સેનાને સુરજ ઉગ્યો છે. બા दिवस्करोऽयं घुमणिर्गभस्तिमाली भ्रमन् व्योम्न्यधुना प्रयाति / श्रान्तश्च विश्रान्ति निमित्तमस्ताचलं गृहं यामि च रिक्तपाणिः // 71 // अर्थ-आकाश मंडल का मणि यह सूर्य कि जिसने किरण रूपी माला ओं को धारण कर रखा है आकाश में भ्रमण करते हुए थक गया है. अब वह विश्राम करने के निमित्त खाली हाथ ही-प्रकाश की मंदता युक्त हुआ ही
SR No.004486
Book TitleLonkashah Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1983
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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