________________ लोकाशाहच रिते अर्थ-जैसे जब भृत्तिकादि द्रव्य अपने पूर्वाकार के रूप से नष्ट हो जाता है तब वह सर्वथा नष्ट हुआ नहीं माना जाता क्यों कि वह उस समय पूर्वाकार का त्याग करके उत्तराकार रूप परिणाम को धारण कर लेता है. इसीलिये वह परिणमन करता हुआ भी दोनों अवस्थाओं में अपनी स्थिति रखने के कारण नित्यरूप-परिणामि नित्य-माना गया है. // 6 // જયારે મૃત્તિકાદિ દ્રવ્ય પિતાના પૂર્વના આકારના રૂપથી નાશ પામે છે, ત્યારે તે સર્વથા નાશ થયું તેમ મનાતું નથી. કેમકે કે એ સમયે પૂર્વના આકારને ત્યાગ કરીને પછીના આકારરૂપ પરિણામને ધારણ કરે છે. તેથી તે પરિણમન કરવા છતાં પણ બેઉ અવસ્થામાં પિતાનું અસ્તિત્વ રાખવાના કારણે નિત્યરૂપ-પરિણમિ નિત્ય માનવામાં આવેલ છે. દા न सर्वथा नित्यमनित्यमित्थं वस्तु प्रसिद्धं भवतीति विज्ञैः। समुच्यते जैनदृशा कथंचित् तथैव तत् सिद्धयति निर्विरोधात् // 6 // अर्थ-इस तरह कोई भी वस्तु न सर्वथा नित्य है और न सर्वथा अनित्य है ऐसा विद्वानों का कहना है जो वस्तु नित्य मानी गई है वही जैन दृष्टि से कथञ्चित् अनित्य और जो अनित्य मानी गई है. वही कचिद नित्य मानी गई है. एसा सिद्ध होता है. इसमें कोई विरोध नहीं आता है. // 68 // આ પ્રમાણે કોઈ પણ વસ્તુ સર્વથા નિત્ય નથી. અને સર્વથા અનિત્ય પણ નથી. તેમ વિદ્વાનનું કહેવું છે, જે વસ્તુને નિત્ય માનવામાં આવી છે, એજ જૈન દૃષ્ટિથી કથંચિત અનિત્ય અને જે અનિત્ય માનવામાં આવી છે, એજ કથંચિત નિત્ય માનેલ છે. તેમ સિદ્ધ થાય છે. આનાથી કંઈજ વિરોધ આવતો નથી. 68 दत्तग्रहादि च्यवहारलोषात क्षणक्षयो नाश्चति सिद्रिसौषट् / कृतप्रणाशा कृतकर्म भोग दोषात्तथा संस्मृतिभङ्गसङ्गात् // 69 // . अर्थ-क्षणक्षय सिद्धान्त एकान्तरूप से इसलिये भी सिद्धिरूपी धवल महलपर विराजमान नहीं हो सकता है कि उसके मानने में दत्तग्रादिरूप व्यवहार नष्ट हो जाता है. क्षण क्षय की मान्यतानुसार जो चीज किसी के लिये दी गई है वह तो उसी समय नष्ट हो जाती है और जो प्राप्त होती है वह अन्य है अतः दी गई वस्तु के ग्रहण करने रूप जो लौकिक व्यवहार है इस क्षणिक सिद्धान्त में निर्दोष नहीं बन सकता है. इसी तरह कृतप्रणाश और अकृतकर्मभोग यह दूषण भी इस सिद्धान्त में आकर उपस्थित हो जता है जैसे-जिसने अच्छे बुरे कर्म किये हैं वह तो सर्वथा नष्ट