________________ 136 लोकाशाहचरिते स्वस्यावलम्बाद् यदि स कदाचित् किञ्चिच्च सत्कृत्यमसौ विदध्यात् / . तदाप्ययं तत्करणे ह्यनेकान् करोति विघ्नान ननु वारणाय // 45 // अर्थ-यदि शरीर की उपेक्षा करके केवल अपना ही सहारा लेकर जीव किसी समय थोड़े बहुत व्रतादिक करने लग जावे तो फिर देखो-यह शरीर उनके करने में जीव को कैसे 2 विघ्नों को उपस्थित करता है // 45 // જો શરીરની પરવા કર્યા વિના કેવળ પિતાનું જ અવલમ્બન કરીને જીવ કેઈસમયે થોડા ઘણું વ્રતાચરણ કરવા લાગી જાય તે પછી જોઈ લે કે આ શરીર તે કરવામાં જીવને કેવા કેવા વિડ્યો કરે છે. ૪પા कासं कदाचिच करोति छाई श्वासावरोधं बहुवातरोगम् / इत्याद्यनेकांश्च विधाय विघ्नान् भवत्यसो तत्प्रतिकूलवती // 46 // अर्थ-कभी यह उसे खांसी से पीडित करता है. कभी वमन से दुःखित करता है, कभी श्वास की बीमारी से परेशान करता है. कभी अनेकविध वात रोग से व्यथित करता है. इत्यादि अनेक रोगों को उत्पन्न करके यह शरीर आत्मा के प्रतिकूल बन जाता है // 46 // કોઈ વખત એ તેને ઉધસથી પીડા ઉપજાવે છે, કોઇવાર ઉહિટથી દુઃખી કરે છે. કોઈ વાર શ્વાસની બિમારીથી હેરાન કરે છે. કેઈવાર અનેક પ્રકારના વાયુના રોગથી દુઃખ ઉપજોવે છે, વિગેરે પ્રકારના અનેક રોગોને ઉપન કરી આ શરીર આત્માની વિરૂદ્ધ થઈ जय छे. // 46 // शनैः शनैर्वा पलितच्छलेन शुभ्राभ्रवच्छभ्रपताकि भूत्वा। मुहुर्मुहुनिगलितप्रश्लेष्मध्वनिच्छल दीर्घरवं विधाय // 47 // शरीरमेतच्च तदात्मनामा विरुद्धयोगं हडतालहेतिम् / स्वाधीनमात्मानमदः करोति कृत्वा शरण्यं कथमात्मनस्तत् // 48 // अर्थ-धीरे 2 यह शरीर सफेद बालों के छल से मानों आकाश के जैसा सफेद झंडा लेकर आत्मा का साम्हना करने लगता है और बार बार निकलते हए श्लेष्म के बहाने से उसके विरुद्ध नारे बाजी करना प्रारंभ कर देता है। जिस प्रकार आजकल मालिक को अपनी बात मनवाने के लिये मजदूर आदि झंडा लेकर और उसके विरुद्ध नारे लगाते हुए हडताल रूपी शत्र का प्रयोग करते हैं. ठीक इसी तरह यह शरीर भी आत्मा के प्रति इसी प्रकार का व्यवहार