________________ 122 लोकाशाहचरिते अथ पञ्चमः सर्गः प्रारभ्यतेअभ्यसभ्यै युवजानिरेषः वृतोऽन्यदा शुभ्र पवित्रवस्त्रः। नक्षत्रवृन्दै वि संपरीतः शशीव वव्राज मठं मुनीनाम् // 1 // अर्थ-एक दिन की बात है कि हैमचन्द्रजी सेठ मुनिजनों के पास में उपाश्रय में गये उनके साथ उस समय सभ्यधनिक जन थे-उपाश्रय में जाने के लायक पवित्र पोशाक इन्हों ने पहिर रखी थी. अतः देखने वालों को ये नक्षत्रराजि से परिवृत चन्द्रमण्डल के जैसे प्रतीत हो रहे थे // 1 // એક દિવસ હેમચંદ્ર શેઠ ઉપાશ્રયમાં મુનિજનેની સમીપે ગયા. તે વખતે તેમની સાથે અન્ય સભ્ય ધનિકજન હતા. ઉપાશ્રમાં જતી વખતે ત્યાને યોગ્ય પવિત્ર પહેરવેશ તેમણે પહેરેલ હતું તેથી જેનારાઓને તેઓ નક્ષત્ર સમૂહથી વિંટળાયેલ ચંદ્ર મંડળની જવા તેઓ જણાઈ રહ્યા હતા. 1 विराजमानं भवदुःखदावानलातपातप्तमुमुक्षु शिष्यान् / संबोधयन्तं गुरुवर्यदेवं ननाम हर्षाश्रुनिरुद्धनेत्रः // 2 // अर्थ-उपाश्रय में पहुंचते ही इन्हों ने गुरुराज को नमस्कार किया. गुरुदेव उस समय भवदुःख रूपी दावानल के आताप से तप्त मुमुक्षु शिष्यों को बोध प्रदान कर रहे थे. गुरु वर्य को देखते ही इनकी दोनों आखों में भक्ति के आंसु आ गये थे. // 2 // ઉપાશ્રયમાં પહોંચીને તેમણે ગુરૂ મહારાજ ને નમરકાર કર્યા. ગુરૂદેવ તે સમયે ભવદુઃખ રૂપી દાવાનળને તાપથી તપેલા મુમુક્ષુ શિષ્ય ગણને બોધ આપી રહ્યા હતા. ગુરૂમહારાજને જોઈને જ તેમની બેઉ આંખોમાં ભક્તિના આંસુ આવી ગયા. મારા स्वदोषशान्त्यै विहितात्मशान्ति गुरुं प्रणम्यात्महिताभिलाषी। दुर्वर्णविक्षोंदधियैव धात्र्यां पुनः पुनः घृष्टललाटपट्टः // 3 // अर्थ-आत्महित की कामना वाले उन हेमचन्द्रजी ने अपने दोषों की शान्ति के निमित्त जिन्हों ने आत्मशान्ति प्राप्त करली है ऐसे गुरु देव को तीन आवत पूर्वक बार २-तीन बार-भूमि पर पंचाङ्ग सहित माथा झुका २कर-उसे भूमि पर इस भावना से कि यदि मेरे भालपट्ट पर कोई द्वारा नीच गोत्र कर्म का आविर्भाव हो गया हो तो उसका क्षय करने के लिये इन्हें बारबार नमस्कार किया. // 3 //