________________ चतुर्थः सर्गः यस्योपर्यनिशं सरोजसदृशो दृष्टिप्रसारो विधेः, . निद्रव्योऽपि धनी भवेत्सुचरितश्चारित्रहीनोऽपि ना / गुण्यग्र्योऽपि च निर्गुणो भविजनैान्यो भवेद्दुर्गुणः, .. पूज्यः स्यादपि दुर्जनः सुजनवदुष्टोऽपि शिष्टो भवेत् // 78 // अर्थ-जिसके ऊपर भाग्य की सरोज के जैसी कोमल कृपा की कोर पडी रहती है वह भले ही निद्रव्य हो पर धनी भी उसके आगे पानी भरता है भले ही वह चारित्र हीन हो पर उसके समक्ष सदाचारी भी घुटने टेक देता है, भले हो वह गुणों से हीन हो पर बडे 2 विद्वान् भी उसके आगे बोलने में अक्षम हो जाते हैं, भले ही वह दुर्गुणो का घर हो पर वह गुणियों में अगुवा बनकर संसार में प्रतिष्ठा पाता है. भले ही वह दुर्जन हो पर सज्जन की तरह वह पुजाता है और भले ही वह दुष्ट हो पर शिष्ट की तरह वह सीना तानकर चला करता है // 78 // જેની ઉપર ભાગ્યની કમળ જેવી કમળ કૃપાદ્રષ્ટિ પડી રહે છે તે ભલે નિર્ધને હેય પણ ધનવાન પણ તેની આગળ પાણી ભરે છે. ભલે તે ચારિત્ર રહિત હોય પણ તેની આગળ સદાચારી પણ મસ્તક નમાવે છે. ભલે તે ગુણોથી રહિત હોય પણ મોટા મોટા વિદ્વાને પણ તેની આગળ બોલવાને અસમર્થ બની જાય છે, ભલે તે દુર્ગાનું ઘર હોય પણ તે ગુણિજનમાં અગ્રેસર બનીને જગતમાં સન્માન મેળવે છે. તે ભલે દુર્જન હોય પણ તે સજજનની માફક પૂજાય છે. તે ભલે દુષ્ટ હોય. પણ સભ્યજનની જેમ ઉંચુ મુખ રાખીને ચાલે છે. I78 लक्ष्मी वा ललनेव पादयुगयोः संवाहनं सादरं, ... कृत्वा नृत्यति तस्य तस्य पुरतो यस्यानुकूलो विधिः / किंचान्यैर्भवभोगसौख्यमतुलं तस्यैव संपद्यते, यस्योपर्यनिशं सरोजसदृशो दृष्टिप्रसारो विधेः // 79 // अर्थ-ललना के जैसी होकर लक्ष्मी भी उसी के दोनों पैरों को बडे आदर के साथ दाबती है कि जिसके ऊपर पुन्य की कृपा है जैसी कोमल कृपादृष्टि भाग्य की बनी रहती है. और उसी के समक्ष वह नाचती रहती है कि जिसके मनुकूल वह भाग्य बना रहता है. और अधिक क्या किसी के सम्बन्ध में कहा जावे जीवन में सांसारिक जितने भी अतुल भोग हैं और जितने भी