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________________ (37) 5- "चारण मुनि" प्रश्न-जंघ, चारण विद्याचारण मुनियों ने मूर्ति वांदी है, यह भगवती सूत्र का कथन तो आपको मान्य है न ? उत्तर-तुम्हारा यह कथन भी ठीक नहीं, कारण भगवती सूत्र में चारण मुनियों ने मूर्ति को वन्दना की ऐसा कथन ही नहीं हैं, वहां तो श्री गौतमस्वामी ने चारण मुनियों की ऊर्द्ध अधोदिशा में गमन करने की जितनी शक्ति है एसा प्रश्न किया है, जिसके उत्तर में प्रभु ने यह बतलाया है कि-यदि चारण मुनि ऊर्द्धादि दिशा में जावें तो इतनी दूर जा सकते हैं उसमें 'चेइयाई वन्दइ' चैत्य वन्दन यह शब्द पाया है जिसका मतलब स्तुति होता है, श्रापके विजयानन्द जी ने भी परोक्ष वन्दन ( स्तुति) को चैत्य वन्दन कहा है तो यहां परोक्ष वन्दन मानने में आपत्ति ही क्या है ? इसके सिवाय यदि इस प्रकार कोई मुनि जावे और उसकी पालाचना नहीं करे तो वह विराधक भी तो कहा गया है ? यह क्या बता रहा है ? श्राप यहां ईर्यापथिकी की आलोचना नहीं समझे. वहां तस्स ठाणस्स'कहकर उस स्थान की पालो. चना लेना कहा है, इससे तो यह कार्य ही अनुपादेय सिद्ध होता है फिर इसमें अधिक विचार की बात ही क्या है
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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