________________ को अन्धविश्वासी बना देती है और साथ ही प्राप्त शक्ति का दुरुपयोग भी करवाती है / मूर्तिपूजा से आत्मोत्थान की आशा रखना तो पत्थर की नांव में बैठ कर महासागर पार करने की विफल चेष्टा के समान है। .. . श्रीमान् लोकाशाह द्वारा प्रबल युक्ति एवं अकाट्य न्यायपूर्वक किये गये मूर्तिपूजा के खण्डन से जड़पूजक समुदाय में भारी खलबली मची / बड़े 2 विद्वानों ने विरोध में कई पुस्तकें लिख डाली किन्तु आज पांच सौ वर्ष होने आये अब तक ऐसा कोई भी मूर्तिपूजक नहीं जन्मा जो मूर्ति पूजा को वर्द्धमान भाषित या पागम विधि (आशा) सम्मत सिद्ध कर सका हो / श्राज तक मूर्ति पूजक बन्धुत्रों की ओर से जितना भी प्रयत्न हुआ है सब का सब उपेक्षणीय है। बस इसी बात को दिखाने के लिए इस पुस्तिका में श्रीमान् लोकाशाह के मूर्तिपूजा खण्डन के विषय में मूर्तिपूजकों की कुतर्कों का समाधान और श्रीमान् शाह की मान्यता का समर्थन करते हुए पाठकों से शांतचित्त से पढ़ने का निवेदन करते हैं /