________________ (12) आओं को छोड़कर निदान के प्रभाव से पाण्डु पुत्र के गले में घर माला डालकर पांच पति की पत्नि बनी श्रादि / ___इस कथानक पर से यह घटित होता है कि द्रौपदी ने जिस जिन प्रतिमा की पूजा की थी वह जिन प्रतिमा, पाठकों के पूर्व परिचित उस तीसरी श्रेणि के जिन (कामदेव) की ही मूर्ति होनी चाहिये / निम्नोक्त हेतु इसको सिद्ध करते हैं (अ) जिन प्रतिमा पूजा के समय द्रौपदी जैन धर्मिणी (श्राविका) नहीं थी, और निदान पूर्ति के पूर्व वह श्राविका भी नहीं हो सकती है, न सम्यक्त्व ही पा सकती है, क्योंकि निदान प्रभाव ही ऐसा है / यदि द्रौपदी के निदान को मन्द रस का कहा जाय तो मन्दरस वाला निदान भी पूरा हुए बिना अपना प्रभाव नहीं हठा सकता, और द्रौपदी की निदान पूर्ति होती है पाणिग्रहण के पश्चात्, अतएव पाणिग्रहण के पूर्व द्रौपदी में सम्यक्त्व का होना एकदम असम्भव मालूम होता है। खास सूत्र में भी स्वयम्बर मण्डप में अाते समय द्रौपदी पर निदान का असर बताने वाला मूल पाठ स्पष्ट रूप से मिलता है, देखिये "पुवकय णियाणेणं चोइज्जमाणी" जब मूर्ति पूजा के पश्चात् भी द्रौपदी के लिए सूत्रकार 'पूर्वकृत निदान से प्रेरित हुई' लिखते हैं तो पहले पूजा के समय उस परसे निदानके प्रभावसे हटकर सम्यक्त्व को कैसे प्राप्त हो गई ?विज्ञ पाटक इस पर जरा मनन करें कि जब सम्यक्त्व ही जिसमें नहीं है तो वह तीर्थङ्कर को आराध्य देव कैसे मान सकता है ? अतएव यह स्पष्ट हुआ कि द्रौपदी की प्रतिमा पूजा तीर्थङ्कर मूर्ति की पूजा नहीं हो सकती।