________________ ( 11) जिन शब्द की इतनी व्याख्या कर देने के बाद द्रौपदी के कथन में वास्तविकता क्या है, यह बताया जाता है। द्रौपदी का वर्णन ज्ञाता धर्मकथाङ्ग सूत्र के १६वें अध्ययन में विस्तार पूर्वक प्राता है, जिसका संक्षिप्त सार यह है कि द्रौपदी ने सर्व प्रथम नागश्री के भव में धर्म-रुविनामक महान् तपस्वी को मास खमण के पारणे में भिता के समय कड़वी तुम्बी का हलाहल विष समान शाक जान-बूझकर बहिराया। और इस तरह उन महान तपस्वीराजके जीवनान्तमें कारण बनी, फल-स्वरूप जन्मजन्मान्तर में अपरिमित दुख सहती हुई मनुष्य भव में आई, शास्त्र में स्पष्ट बताया है कि सुकुमालिका (द्रौपदी का जीव ) चारित्र की विराधक हो गई और एक वेश्या को पांच पुरुषों के साथ क्रीड़ा करती देखकर उसने ऐसा निदान कर लिया कि-'यदि मेरी तपश्चर्या का फल हो तो भविष्य में मुझे भी पांच पति मिले, और मैं उनके साथ अानन्द क्रीड़ा करूं' ऐसा निदान करके बालोचना प्रायश्चित लिये बिना ही मृत्यु पाकर स्वर्ग में गई, वहां से फिर द्रौपदी पने में उत्पन्न हुई / यौवनावस्था प्राप्त होने पर पिता ने उसके पाणिगृहण के लिए स्वयंबर की रचना की, अनेक राजा, महाराजा आदि एकत्रित हुए / तब पूर्व कृत निदान के प्रभाव से विलास की भावना वाली द्रौपदी युवती ने स्वयम्बर में जाने के लिए स्नानादि कर वस्त्राभूषणों से शरीर को अलंकृत किया फिर जिन घर में जाकर जिन-प्रतिमा की पूजा करके स्वयंबर मण्डप में गई और वहां अन्य सब राजा, महारा